नववर्ष की पूर्व संध्या, उर्दू शायर जोश मलीहाबादी के संग, यानी सोने में सुगंध, ज़िंदगी भर याद रहनेवाली एक शाम.
वो साल 1967 का अंतिम दिन था. शब्बीर हुसैन ख़ान उर्फ़ जोश मलीहाबादी के साथ शायरों का एक समूह दिल्ली की जामा मस्जिद के निकट दरियागंज में मशहूर मोती महल रेस्त्रां में घुसा.
पाकिस्तान से दिल्ली पहुंचने के बाद, जोश इसी इलाक़े में जगत सिनेमा के पास एक होटल में ठहरे थे (कुछ सालों तक इस लेखक का भी निवास यहीं था).
पत्नी के दबाव में जोश लाहौर जाकर बस गए थे, जिसका उनके क़रीबी मित्र और भारत के उस समय प्रधानमंत्री रहे जवाहरलाल नेहरू को काफ़ी अफ़सोस रहा. उस रोज़ उन्होंने क़रीब घंटा भर उस रेस्त्रां में बिताया.
रेस्त्रां के बाद उन्हें किसी ज़रूरी काम से जाना था. लेकिन रेस्त्रां में बिताया वो घंटा अनमोल था. शाम की शुरुआत हुई आगरा के सहबा की ग़ज़लों के साथ, जिसमें विभाजन-पूर्व सालों की यादें शुमार थीं.
फिर बारी आई अफ़ज़ल साहब की, जिनपर दिल्ली में जोश साहब की मेज़बानी का ज़िम्मा था. उनकी नज़्मों की प्रेम और दीवानगी में स्त्री को ईश्वरत्व के साथ जोड़ा गया था. ये अवधारणा इन पंक्तियों में बिलकुल सटीक बैठती है, "मैंने तो औरत को ख़ुदा माना है".
पास कुर्सी पर बैठी एक महिला उन्हें कुछ यूं टकटकी बांधे देखती रही मानो उन अल्फ़ाज़ों के गूढ़ अर्थ तलाश रही हो. जयपुर के एक शायर बेताब ने गद्य में अपनी भावनाओं को उकेरा, जिसका अर्थ था कि उर्दू कविताओं में शराब, महिला और गीत साथ नहीं चल सकते, क्योंकि बातें इनसे इतर भी होती हैं.
जोश उनसे इत्तिफ़ाक़ दिखा रहे थे, क्योंकि अब तक वो ख़ुद भी बुलबुल, बयाबान, हुस्न ओ इश्क़ से दूरी बना चुके थे.
जब जवां हुई महफ़िल
लम्बोतरे चेहरे और ऊंची तरन्नुम वाले युवा सिकंदर देहलवी ने अपना सूफ़ियाना कलाम पढ़ा. उन्हें हर रोज मग़रीब की नमाज़ के बाद हरे भरे, सर्मद और हज़रत कलीमुल्लाह के मज़ारों पर अपने गढ़े हुए कलाम पढ़ते देखा जा सकता था. लेकिन उनके कलाम पर कम ही लोगों का ध्यान जाता, क्योंकि लोगों की दिलचस्पी रात 8 बजे के बाद होने वाली क़व्वालियों पर ज़्यादा रहती थी.
मशहूर कश्मीरी उर्दू शायर गुलज़ार देहलवी उस रोज़ नहीं थे, लेकिन आरईआई कॉलेज, दयालबाग़ के प्रोफ़ेसर मदहोश साहिब, मैकश अकबराबादी के साथ मौजूद थे. मदहोश जब वहां पहुंचे तो उनपर मदहोशी का आलम छा चुका था, लेकिन उनकी शायरी में कहीं मद का सुरूर न था.
मैकश अकबराबादी ने अपने नाम के ठीक विपरीत अपनी ज़िंदगी में कभी शराब नहीं चखी थी. वो ईश्वरीय-प्रेम में डूबे रहते और उनकी शायरी उनके सूफ़ियाना विचारों का अक्स होती थी. उनके हिसाब से पीर भी मैकश था, जिसके अनगिनत शागिर्द थे.
उन शागिर्दों में मोवा कतरा की नर्तकियां भी शुमार थीं, जो हर सुबह अपने बच्चों के साथ उनके पास आतीं और बुरी नज़र से बचाने के लिए उनसे तावीज़ बंधवातीं.
जोश के छोटे भाई शायर तो न थे, पर एक साहित्यकार और ज़मींदार थे, जो लखनऊ के पास मलीहाबाद से ख़ासतौर से अपने भाई और भाभी से मिलने आए थे.
जोश ने उनसे लाहौर में बोने के लिए दशहरी आम के कुछ बिरवे मंगाए थे. अपने आमों के लिए मलीहाबाद आज भी मशहूर है.
हर कोई उन्हें "ख़ान साहब" कहकर पुकारता था. पूरी शाम वो खोए-खोए और होटल में छोड़ आए अपने हुक़्क़े की याद में डूबे रहे. लेकिन रहरहकर किसी शायर की ज़ुबान से निकलनेवाले ग़लत तलफ़्फ़ुज़ को दुरुस्त करना न छोड़ते.
एक शायर से उन्होंने पूछ ही डाला कि वो मूल रूप से कहां के रहनेवाले थे. क्योंकि उनकी शायरी में उन्हें पंजाबी छाप दिख गई थी.
"मैं दिल्ली में उनत्तीस सालों से हूं", उन्होंने जवाब दिया.
"सही शब्द उनत्तीस नहीं, बल्कि उनतीस है, यानी अरबी ज़ुबान में 30 में से एक कम."
उस शायर का जोश ठंडा पड़ते देख जोश ने हौसला बंधाते हुए दख़ल दिया और कहा कि उच्चारण में दुरुस्ती को दिल पर न लें और इसे एक बुज़ुर्ग की नसीहत समझें.
Monday, December 31, 2018
Thursday, December 27, 2018
जानलेवा हो सकता है इंटरनेट पर बीमारी का इलाज ढूंढना
दिल्ली के रहने वाले अमित बीमारी का एक भी लक्षण होने पर तुरंत इंटरनेट का रुख़ कर लेते हैं. इंटरनेट पर दिए गए लक्षणों के हिसाब से अपनी बीमारी का अंदाज़ा लगाते हैं.
हाल ही में अमित को कुछ दिनों से सिर में दर्द और भारीपन था. जब सामान्य दवाई से भी वो ठीक नहीं हुआ तो उन्होंने इंटरनेट पर सर्च करना शुरू कर दिया.
इंटरनेट पर उन्हें सिरदर्द के लिए माइग्रेन और ब्रेन ट्यूमर जैसी बीमारियां तक मिलीं. इससे परेशान होकर वो राम मनोहर लोहिया अस्पताल दौड़ पड़े और डॉक्टर से जिद्द करके सिटी स्कैन लिखवा लिया.
टेस्ट कराने पर नतीजे बिल्कुल सामान्य आए और कुछ दिनों में सिरदर्द भी चला गया.
लेकिन, इन कुछ दिनों में अमित सिरदर्द से ज़्यादा परेशान बीमारी को लेकर रहे.
इस तरह इंटरनेट पर बीमारी, दवाई या टेस्ट रिपोर्ट समझने की कोशिश करने वालों की संख्या कम नहीं है. कई लोग बीमारियों के लक्षण और इलाज खोजने के लिए इंटरनेट का इस्तेमाल करने लगे हैं.
वह बीमारी के बारे में इंटरनेट पर पढ़ते हैं और उस पर अपने निष्कर्ष निकालने लगते हैं. इस रिसर्च के आधार पर ही वो डॉक्टर से भी इलाज करने के लिए कहते हैं.
डॉक्टर्स का आए दिन इस तरह के मरीजों से आमना-सामना होता है और उन्हें समझा पाना डॉक्टर के लिए चुनौती बन जाता है.
डॉक्टर और मरीज दोनों परेशान
इस बारे में मैक्स अस्पताल में मेडिकल एडवाइज़र और डायरेक्टर(इंटरनल मेडिसिन) डॉ. राजीव डैंग कहते हैं, ''हर दूसरा मरीज नेट और गूगल से कुछ न कुछ पढ़कर आता है, उसके मुताबिक सोच बनाता है और फिर बेबुनियाद सवाल करता है. मरीज अपनी इंटरनेट रिसर्च के अनुसार जिद करके टेस्ट भी कराते हैं और छोटी-मोटी दवाइयां ले लेते हैं.''
''कई लोग सीधे आकर कहते हैं कि हमें कैंसर हो गया है. डॉक्टर खुद कैंसर शब्द का इस्तेमाल तब तक नहीं करते जब तक पूरी तरह आश्वस्त नहीं हो जाते कि ये कैंसर है क्योंकि इससे मरीज को घबराहट हो सकती है.''
लोगों में दवाइयों का इस्तेमाल जानने को लेकर भी काफी उत्सुकता होती है. वह इस्तेमाल से लेकर दुष्प्रभाव तक इंटरनेट पर खोजने लगते हैं.
डॉ. राजीव कहते हैं कि भले ही व्यक्ति किसी भी पेशे से क्यों न हो लेकिन वो खुद को दवाइयों में विशेषज्ञ मानने लगता है.
उन्होंने एक घटना का जिक्र करते हुए बताया, ''एक बार मेरे एक मरीज के रिश्तेदार ने फोन करके मुझसे गुस्से में पूछा कि आपने ये दवाई क्यों लिखी. वो रिश्तेदार वर्ल्ड बैंक में काम करते थे. उन्होंने कहा कि इंटरनेट पर तो लिखा है कि ये एंटी डिप्रेशन दवाई है और मरीज को डिप्रेशन ही नहीं है. तब मैंने समझाया कि ये दवाई सिर्फ एंटी डिप्रेशन की नहीं है. इसके और भी काम है लेकिन इंटरनेट पर पढ़कर ये नहीं समझा जा सकता.''
अगर आप इंटरनेट पर 'सिम्टम्पस ऑफ ब्रेन ट्यूमर' सर्च करें तो वो सिरदर्द, उलटी, बेहोशी और नींद की समस्या जैसे लक्षण बताता है. इनमें से कुछ लक्षण दूसरी बीमारियों से भी मिलते-जुलते हैं. इसी तरह सिरदर्द सर्च करने पर ढेरों आर्टिकल इस पर मिल जाते हैं कि सिरदर्द से जुड़ी कौन-कौन सी बीमारियां होती हैं. इससे मरीज भ्रम में पड़ जाता है.
मनोचिकित्सक डॉ. संदीप वोहरा बताते हैं, ''ऐसे लोगों को जैसे ही खुद में कोई लक्षण नजर आता है तो वो इंटरनेट पर उसे दूसरी बीमारियों से मैच करने लगते हैं. इंटरनेट पर छोटी से लेकर बड़ी बीमारी दी गई होती है. मरीज बड़ी बीमारी के बारे में पढ़कर डर जाते हैं.''
वह कहते हैं कि इससे दिक्कत ये होती है कि मरीज नकारात्मक ख्यालों से भर जाता है. उसके इलाज में देरी होती है क्योंकि कई बार मरीज दवाइयों के दुष्प्रभाव के बारे में पढ़कर दवाई लेना ही छोड़ देते हैं. ग़ैरज़रूरी टेस्ट पर खर्चा करते हैं और अपना समय ख़राब करते हैं. कितना भी समझाओ लोग समझने की कोशिश ही नहीं करते.
हाल ही में अमित को कुछ दिनों से सिर में दर्द और भारीपन था. जब सामान्य दवाई से भी वो ठीक नहीं हुआ तो उन्होंने इंटरनेट पर सर्च करना शुरू कर दिया.
इंटरनेट पर उन्हें सिरदर्द के लिए माइग्रेन और ब्रेन ट्यूमर जैसी बीमारियां तक मिलीं. इससे परेशान होकर वो राम मनोहर लोहिया अस्पताल दौड़ पड़े और डॉक्टर से जिद्द करके सिटी स्कैन लिखवा लिया.
टेस्ट कराने पर नतीजे बिल्कुल सामान्य आए और कुछ दिनों में सिरदर्द भी चला गया.
लेकिन, इन कुछ दिनों में अमित सिरदर्द से ज़्यादा परेशान बीमारी को लेकर रहे.
इस तरह इंटरनेट पर बीमारी, दवाई या टेस्ट रिपोर्ट समझने की कोशिश करने वालों की संख्या कम नहीं है. कई लोग बीमारियों के लक्षण और इलाज खोजने के लिए इंटरनेट का इस्तेमाल करने लगे हैं.
वह बीमारी के बारे में इंटरनेट पर पढ़ते हैं और उस पर अपने निष्कर्ष निकालने लगते हैं. इस रिसर्च के आधार पर ही वो डॉक्टर से भी इलाज करने के लिए कहते हैं.
डॉक्टर्स का आए दिन इस तरह के मरीजों से आमना-सामना होता है और उन्हें समझा पाना डॉक्टर के लिए चुनौती बन जाता है.
डॉक्टर और मरीज दोनों परेशान
इस बारे में मैक्स अस्पताल में मेडिकल एडवाइज़र और डायरेक्टर(इंटरनल मेडिसिन) डॉ. राजीव डैंग कहते हैं, ''हर दूसरा मरीज नेट और गूगल से कुछ न कुछ पढ़कर आता है, उसके मुताबिक सोच बनाता है और फिर बेबुनियाद सवाल करता है. मरीज अपनी इंटरनेट रिसर्च के अनुसार जिद करके टेस्ट भी कराते हैं और छोटी-मोटी दवाइयां ले लेते हैं.''
''कई लोग सीधे आकर कहते हैं कि हमें कैंसर हो गया है. डॉक्टर खुद कैंसर शब्द का इस्तेमाल तब तक नहीं करते जब तक पूरी तरह आश्वस्त नहीं हो जाते कि ये कैंसर है क्योंकि इससे मरीज को घबराहट हो सकती है.''
लोगों में दवाइयों का इस्तेमाल जानने को लेकर भी काफी उत्सुकता होती है. वह इस्तेमाल से लेकर दुष्प्रभाव तक इंटरनेट पर खोजने लगते हैं.
डॉ. राजीव कहते हैं कि भले ही व्यक्ति किसी भी पेशे से क्यों न हो लेकिन वो खुद को दवाइयों में विशेषज्ञ मानने लगता है.
उन्होंने एक घटना का जिक्र करते हुए बताया, ''एक बार मेरे एक मरीज के रिश्तेदार ने फोन करके मुझसे गुस्से में पूछा कि आपने ये दवाई क्यों लिखी. वो रिश्तेदार वर्ल्ड बैंक में काम करते थे. उन्होंने कहा कि इंटरनेट पर तो लिखा है कि ये एंटी डिप्रेशन दवाई है और मरीज को डिप्रेशन ही नहीं है. तब मैंने समझाया कि ये दवाई सिर्फ एंटी डिप्रेशन की नहीं है. इसके और भी काम है लेकिन इंटरनेट पर पढ़कर ये नहीं समझा जा सकता.''
अगर आप इंटरनेट पर 'सिम्टम्पस ऑफ ब्रेन ट्यूमर' सर्च करें तो वो सिरदर्द, उलटी, बेहोशी और नींद की समस्या जैसे लक्षण बताता है. इनमें से कुछ लक्षण दूसरी बीमारियों से भी मिलते-जुलते हैं. इसी तरह सिरदर्द सर्च करने पर ढेरों आर्टिकल इस पर मिल जाते हैं कि सिरदर्द से जुड़ी कौन-कौन सी बीमारियां होती हैं. इससे मरीज भ्रम में पड़ जाता है.
मनोचिकित्सक डॉ. संदीप वोहरा बताते हैं, ''ऐसे लोगों को जैसे ही खुद में कोई लक्षण नजर आता है तो वो इंटरनेट पर उसे दूसरी बीमारियों से मैच करने लगते हैं. इंटरनेट पर छोटी से लेकर बड़ी बीमारी दी गई होती है. मरीज बड़ी बीमारी के बारे में पढ़कर डर जाते हैं.''
वह कहते हैं कि इससे दिक्कत ये होती है कि मरीज नकारात्मक ख्यालों से भर जाता है. उसके इलाज में देरी होती है क्योंकि कई बार मरीज दवाइयों के दुष्प्रभाव के बारे में पढ़कर दवाई लेना ही छोड़ देते हैं. ग़ैरज़रूरी टेस्ट पर खर्चा करते हैं और अपना समय ख़राब करते हैं. कितना भी समझाओ लोग समझने की कोशिश ही नहीं करते.
Monday, December 17, 2018
क्या सऊदी अरब के तेल का खेल भी बिगाड़ेगा अमरीका
पिछले हफ़्ते अमरीका तेल का निर्यातक देश बन गया. ऐसा पिछले 75 सालों में पहली बार हुआ है क्योंकि अमरीका अब तक तेल के लिए विदेशों से आयात पर ही निर्भर रहा है. राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप अमरीका को ऊर्जा के मामले में आत्मनिर्भर बनाने की बात कई बार कह चुके हैं.
अमरीका में तेल उत्पादन नाटकीय रूप से बढ़ा है. टेक्सस के पेरमिअन इलाक़े में, न्यू मेक्सिको, उत्तरी डकोटा के बैकन और पेन्सोवेनिया के मर्सेलस में तेल के हज़ारों कुंओं से तेल निकाले जा रहे हैं.
इन तेल के कुंओं पर अमरीका वर्षों से काम कर रहा था. पिछले हफ़्ते जो डेटा आया उससे पता चलता है कि अमरीका के तेल में आयात में भारी गिरावट आई और निर्यात में भारी उछाल दर्ज किया गया. हो सकता है कि अमरीका तेल का छोटा आयातक हमेशा रहे लेकिन अब पहले वाली बात नहीं रह गई कि वो विदेशी तेल पर ही निर्भर रहेगा.
अमरीका के रणनीतिक ऊर्जा और आर्थिक शोध के प्रमुख माइकल लिंच ने ब्लूमबर्ग से कहा है, ''हमलोग दुनिया के ताक़तवर ऊर्जा उत्पादक देश बन गए हैं.''
पिछले 50 सालों से ओपेक दुनिया भर में तेल की राजनीति का केंद्र रहा है लेकिन रूस और अमरीका में तेल के बढ़ते उप्पादनों से ओपेक की बादशाहत को चुनौती मिलना तय है.
ओपेक देश नीतियों, क़ीमतों और उत्पादन की सीमा को लेकर जूझ रहे हैं. पिछले हफ़्ते वियना में ओपेक और साथियों की एक बैठक हुई थी. ओपेक को डर है कि अमरीका तेल का उत्पादन बढ़ाता है तो उसके बाज़ार पर सीधा असर पड़ेगा.
क्या करेगा ओपेक
सीआईए की पूर्व एनलिस्ट और आरबीसी मार्केट्स एलएलसी में कमोडिटिज स्ट्रैटिजिस्ट हेलिमा क्रोफ़्ट का कहना है, ''ओपेक उथल-पुथल के दौर से गुजर रहा है. क़तर इस समूह से अलग होने जा रहा है. इसके बाद सऊदी और अमरीका के बीच वियना में एक गोपनीय बैठक हुई है. इसके बाद ओपेक की एक प्रस्तावित प्रेस कॉन्फ़्रेंस रद्द हो गई. अब पिछले हफ़्ते ये ख़बर आई कि अमरीका ने तेल निर्यात करना शुरू कर दिया है.''
अमरीकी ऊर्जा सूचना प्रशासन यानी ईआईए के मुताबिक़ अमरीका पिछले हफ़्ते से हर दिन दो लाख 11 हज़ार बैरल कच्चा तेल और रिफाइन्ड उत्पाद विदेशों में बेच रहा है. इनमें डीज़ल और गैसोलीन अहम हैं. इसकी तुलना में अमरीका ने 2018 में औसत हर दिन 30 लाख बैरल तेल का आयात किया था.
ईआईए का कहना है कि 1991 से पहले अमरीका में तेल आयात का डेटा साप्ताहिक आता था और मासिक डेटा जारी करना 1973 में शुरू हुआ था. अमरीकी पेट्रोलियम इंस्टिट्यूट का कहना है कि अमरीका ने 1940 के दशक से तेल आयात करना शुरू किया था. अब आज की तारीख़ में अमरीका तेल के मामले में आत्मनिर्भर देश बन गया है. अमरीकी सरकारों के लिए तेल के मामले आत्मनिर्भर बनना शुरू से ही सपना रहा है.
अमरीका तेल के कम से कम नौ और टर्मिनल्स पर काम कर रहा है. दिसंबर के आख़िरी महीने से अमरीका से तेल के निर्यात और बढ़ने की संभावना है.
डेलवेयर बेसिन से तेल निकालने का काम अब भी बड़े पैमाने पर शुरू नहीं हो पाया है. डेलवेयर बेसिन के बारे में अनुमान है कि तेल का भंडार मिडलैंड बेसिन से दोगुना है.
नए आंकड़ों के मुताबिक़ अमरीका अब तेल ख़रीदने से ज़्यादा बेच रहा है. यूएस जियोलॉजिकल सर्विस ने गुरुवार को कहा है कि अमरीका दुनिया भर से हर दिन 70 लाख बैरल से ज़्यादा कच्चा तेल अपने रिफ़ाइनरी के लिए आयात करता है.
इन रिफ़ाइनरियों को हर दिन एक करोड़ 70 लाख बैरल कच्चे तेल की ज़रूरत पड़ती है. ऐसे में अमरीका दुनिया का सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता देश बन जाता है. अमरीका तेल के बाज़ार में अब एक बड़ा खिलाड़ी बनकर उभर गया है.
अमरीका में तेल उत्पादन हर साल 20 फ़ीसदी की दर से बढ़ रहा है. पिछले एक सदी में अमरीका का तेल उत्पादन सबसे तेज़ गति से बढ़ा है. इस साल की शुरुआत में तो अमरीका ने तेल उत्पादन के मामले में सऊदी और रूस को भी पीछे छोड़ दिया था. सऊदी और रूस दुनिया के सबसे बड़े तेल उत्पादक देश हैं.
2016 में रिस्ताद एनर्जी की एक रिपोर्ट आई थी, जिसमें बताया गया था कि अमरीका के पास 264 अरब बैरल तेल भंडार है. इसमें मौजूदा तेल भंडार, नए प्रोजेक्ट, हाल में खोजे गए तेल भंडार और जिन तेल कुंओं को खोजा जाना बाक़ी है, वे सब शामिल हैं.
इस रिपोर्ट में बताया गया है कि रूस और सऊदी से ज़्यादा अमरीका के पास तेल भंडार है. रिस्ताद एनर्जी के अनुमान के मुताबिक़ रूस में तेल 256 अरब बैरल, सऊदी में 212 अरब बैरल, कनाडा में 167 अरब बैरल, ईरान में 143 और ब्राज़ील में 120 अरब बैरल तेल है.
अमरीका में तेल उत्पादन नाटकीय रूप से बढ़ा है. टेक्सस के पेरमिअन इलाक़े में, न्यू मेक्सिको, उत्तरी डकोटा के बैकन और पेन्सोवेनिया के मर्सेलस में तेल के हज़ारों कुंओं से तेल निकाले जा रहे हैं.
इन तेल के कुंओं पर अमरीका वर्षों से काम कर रहा था. पिछले हफ़्ते जो डेटा आया उससे पता चलता है कि अमरीका के तेल में आयात में भारी गिरावट आई और निर्यात में भारी उछाल दर्ज किया गया. हो सकता है कि अमरीका तेल का छोटा आयातक हमेशा रहे लेकिन अब पहले वाली बात नहीं रह गई कि वो विदेशी तेल पर ही निर्भर रहेगा.
अमरीका के रणनीतिक ऊर्जा और आर्थिक शोध के प्रमुख माइकल लिंच ने ब्लूमबर्ग से कहा है, ''हमलोग दुनिया के ताक़तवर ऊर्जा उत्पादक देश बन गए हैं.''
पिछले 50 सालों से ओपेक दुनिया भर में तेल की राजनीति का केंद्र रहा है लेकिन रूस और अमरीका में तेल के बढ़ते उप्पादनों से ओपेक की बादशाहत को चुनौती मिलना तय है.
ओपेक देश नीतियों, क़ीमतों और उत्पादन की सीमा को लेकर जूझ रहे हैं. पिछले हफ़्ते वियना में ओपेक और साथियों की एक बैठक हुई थी. ओपेक को डर है कि अमरीका तेल का उत्पादन बढ़ाता है तो उसके बाज़ार पर सीधा असर पड़ेगा.
क्या करेगा ओपेक
सीआईए की पूर्व एनलिस्ट और आरबीसी मार्केट्स एलएलसी में कमोडिटिज स्ट्रैटिजिस्ट हेलिमा क्रोफ़्ट का कहना है, ''ओपेक उथल-पुथल के दौर से गुजर रहा है. क़तर इस समूह से अलग होने जा रहा है. इसके बाद सऊदी और अमरीका के बीच वियना में एक गोपनीय बैठक हुई है. इसके बाद ओपेक की एक प्रस्तावित प्रेस कॉन्फ़्रेंस रद्द हो गई. अब पिछले हफ़्ते ये ख़बर आई कि अमरीका ने तेल निर्यात करना शुरू कर दिया है.''
अमरीकी ऊर्जा सूचना प्रशासन यानी ईआईए के मुताबिक़ अमरीका पिछले हफ़्ते से हर दिन दो लाख 11 हज़ार बैरल कच्चा तेल और रिफाइन्ड उत्पाद विदेशों में बेच रहा है. इनमें डीज़ल और गैसोलीन अहम हैं. इसकी तुलना में अमरीका ने 2018 में औसत हर दिन 30 लाख बैरल तेल का आयात किया था.
ईआईए का कहना है कि 1991 से पहले अमरीका में तेल आयात का डेटा साप्ताहिक आता था और मासिक डेटा जारी करना 1973 में शुरू हुआ था. अमरीकी पेट्रोलियम इंस्टिट्यूट का कहना है कि अमरीका ने 1940 के दशक से तेल आयात करना शुरू किया था. अब आज की तारीख़ में अमरीका तेल के मामले में आत्मनिर्भर देश बन गया है. अमरीकी सरकारों के लिए तेल के मामले आत्मनिर्भर बनना शुरू से ही सपना रहा है.
अमरीका तेल के कम से कम नौ और टर्मिनल्स पर काम कर रहा है. दिसंबर के आख़िरी महीने से अमरीका से तेल के निर्यात और बढ़ने की संभावना है.
डेलवेयर बेसिन से तेल निकालने का काम अब भी बड़े पैमाने पर शुरू नहीं हो पाया है. डेलवेयर बेसिन के बारे में अनुमान है कि तेल का भंडार मिडलैंड बेसिन से दोगुना है.
नए आंकड़ों के मुताबिक़ अमरीका अब तेल ख़रीदने से ज़्यादा बेच रहा है. यूएस जियोलॉजिकल सर्विस ने गुरुवार को कहा है कि अमरीका दुनिया भर से हर दिन 70 लाख बैरल से ज़्यादा कच्चा तेल अपने रिफ़ाइनरी के लिए आयात करता है.
इन रिफ़ाइनरियों को हर दिन एक करोड़ 70 लाख बैरल कच्चे तेल की ज़रूरत पड़ती है. ऐसे में अमरीका दुनिया का सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता देश बन जाता है. अमरीका तेल के बाज़ार में अब एक बड़ा खिलाड़ी बनकर उभर गया है.
अमरीका में तेल उत्पादन हर साल 20 फ़ीसदी की दर से बढ़ रहा है. पिछले एक सदी में अमरीका का तेल उत्पादन सबसे तेज़ गति से बढ़ा है. इस साल की शुरुआत में तो अमरीका ने तेल उत्पादन के मामले में सऊदी और रूस को भी पीछे छोड़ दिया था. सऊदी और रूस दुनिया के सबसे बड़े तेल उत्पादक देश हैं.
2016 में रिस्ताद एनर्जी की एक रिपोर्ट आई थी, जिसमें बताया गया था कि अमरीका के पास 264 अरब बैरल तेल भंडार है. इसमें मौजूदा तेल भंडार, नए प्रोजेक्ट, हाल में खोजे गए तेल भंडार और जिन तेल कुंओं को खोजा जाना बाक़ी है, वे सब शामिल हैं.
इस रिपोर्ट में बताया गया है कि रूस और सऊदी से ज़्यादा अमरीका के पास तेल भंडार है. रिस्ताद एनर्जी के अनुमान के मुताबिक़ रूस में तेल 256 अरब बैरल, सऊदी में 212 अरब बैरल, कनाडा में 167 अरब बैरल, ईरान में 143 और ब्राज़ील में 120 अरब बैरल तेल है.
Thursday, December 13, 2018
नेपाल में भारत के नए नोट हुए बंद
नेपाल में दो हज़ार, पांच सौ और दो सौ रुपए के नए भारतीय नोटों को अवैध घोषित कर दिया गया है. ये नोट भारत में 2016 में हुई नोटबंदी के बाद लाए गए थे.
8 नवंबर 2016 की शाम को भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 500 और 1000 के नोट बंद करने का एलान किया था. इसके लगभग दो साल बाद नेपाल में नोटबंदी के बाद आए नए नोटों को गैरकानूनी घोषित कर दिया गया है.
इसी की पूरी जानकारी लेने के लिए बीबीसी संवाददाता भूमिका राय ने नेपाल की राजधानी काठमांडू में मौजूद बीबीसी हिंदी रेडियो के एडिटर राजेश जोशी से बात की.
वे बताते हैं कि कैबिनेट में इसका फ़ैसला बीते सोमवार को ही ले लिया गया था लेकिन पत्रकारों को इसकी जानकारी गुरुवार दी गई है.
वे कहते हैं, ''सरकारी प्रवक्ता गोकुल बास्कोटा ने बताया कि दो हज़ार, पांच सौ और दो सौ रुपए के भारतीय नोट को रखना, उनके बदले किसी सामान को लेना या भारत से उन्हें नेपाल में लाना ग़ैरकानूनी हो गया है.''
दो साल बाद क्यों उठा ये मुद्दा
भारतीय मुद्रा नेपाल में आसानी से चलती थी. यहां के कई लोगों का कहना है कि उनके पास अब भी भारत के पुराने हज़ार और पांच सौ के कई नोट हैं, जिन्हें वापस नहीं लिया गया है.
एक बार नेपाल के केंद्रीय बैंक ने ये कहा था कि उनके पास भारत की करीब आठ करोड़ रुपए मूल्य के पुराने नोट हैं.
नेपाल के विदेशी विनिमय व्यस्थापन विभाग के कार्यकारी निदेशक भीष्मराज ढुंगाना ने सितम्बर, 2018 में कहा था कि भारत अपने पुराने नोटों को क्यों नहीं बदलता.
बीबीसी हिंदी के रेडियो एडिटर ये भी बताते हैं कि ये सवाल तब भी उठा था जब भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नेपाल में जनकपुरधाम के दर्शन करने के लिए आए थे.
तब नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने भी उनके सामने ये मुद्दा उठाया था.
लेकिन उसके बाद भी कुछ नहीं हुआ, जिसे लेकर यहां नाराज़गी बनी हुई थी और शायद इसी वजह से नेपाल सरकार ने भारत के नए नोटों को अवैध घोषित करने का फ़ैसला लिया है.
हालाँकि नेपाल सरकार ने दो हज़ार, पांच सौ और दो सौ के नए नोट के अलावा किसी और नोट के बारे में नहीं बताया गया है. सौ का नोट चलेगा या नहीं इसके बारे में सरकार ने कुछ नहीं कहा है.
8 नवंबर 2016 की शाम को भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 500 और 1000 के नोट बंद करने का एलान किया था. इसके लगभग दो साल बाद नेपाल में नोटबंदी के बाद आए नए नोटों को गैरकानूनी घोषित कर दिया गया है.
इसी की पूरी जानकारी लेने के लिए बीबीसी संवाददाता भूमिका राय ने नेपाल की राजधानी काठमांडू में मौजूद बीबीसी हिंदी रेडियो के एडिटर राजेश जोशी से बात की.
वे बताते हैं कि कैबिनेट में इसका फ़ैसला बीते सोमवार को ही ले लिया गया था लेकिन पत्रकारों को इसकी जानकारी गुरुवार दी गई है.
वे कहते हैं, ''सरकारी प्रवक्ता गोकुल बास्कोटा ने बताया कि दो हज़ार, पांच सौ और दो सौ रुपए के भारतीय नोट को रखना, उनके बदले किसी सामान को लेना या भारत से उन्हें नेपाल में लाना ग़ैरकानूनी हो गया है.''
दो साल बाद क्यों उठा ये मुद्दा
भारतीय मुद्रा नेपाल में आसानी से चलती थी. यहां के कई लोगों का कहना है कि उनके पास अब भी भारत के पुराने हज़ार और पांच सौ के कई नोट हैं, जिन्हें वापस नहीं लिया गया है.
एक बार नेपाल के केंद्रीय बैंक ने ये कहा था कि उनके पास भारत की करीब आठ करोड़ रुपए मूल्य के पुराने नोट हैं.
नेपाल के विदेशी विनिमय व्यस्थापन विभाग के कार्यकारी निदेशक भीष्मराज ढुंगाना ने सितम्बर, 2018 में कहा था कि भारत अपने पुराने नोटों को क्यों नहीं बदलता.
बीबीसी हिंदी के रेडियो एडिटर ये भी बताते हैं कि ये सवाल तब भी उठा था जब भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नेपाल में जनकपुरधाम के दर्शन करने के लिए आए थे.
तब नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने भी उनके सामने ये मुद्दा उठाया था.
लेकिन उसके बाद भी कुछ नहीं हुआ, जिसे लेकर यहां नाराज़गी बनी हुई थी और शायद इसी वजह से नेपाल सरकार ने भारत के नए नोटों को अवैध घोषित करने का फ़ैसला लिया है.
हालाँकि नेपाल सरकार ने दो हज़ार, पांच सौ और दो सौ के नए नोट के अलावा किसी और नोट के बारे में नहीं बताया गया है. सौ का नोट चलेगा या नहीं इसके बारे में सरकार ने कुछ नहीं कहा है.
Monday, December 10, 2018
उर्जित पटेल का इस्तीफ़ा अर्थव्यवस्था पर भारी चोट: मनमोहन सिंह- पांच बड़ी ख़बरें
रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया के गवर्नर उर्जित पटेल ने सोमवार को निजी कारणों का हवाला देते हुए अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया था.
उनके इस्तीफ़े पर पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है. मनमोहन सिंह ने कहा है कि उर्जित का इस्तीफ़ा अर्थव्यवस्था पर गहरा आघात है.
पूर्व प्रधानमंत्री ने कहा, "उम्मीद है कि यह इस्तीफ़ा तीन खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था वाले संस्थान के आधार को नष्ट करने की शुरुआत नहीं होगी."
वहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, "पटेल ने बैंकिंग प्रणाली को अफ़रातफ़री से निकाल कर व्यवस्थित और अनुशासित बनाने का काम किया. वो एक पेशेवर व्यक्ति हैं, जिनकी निष्ठा बेदाग़ है."
राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिज़ोरम में हुए विधानसभा चुनावों की मतगणना आज यानी 11 दिसंबर की सुबह आठ बजे से शुरू होने जा रही है.
कुछ ही घंटों में रूझान मिलने शुरू हो जाएंगे. पांचों राज्यों में किसकी सरकार होगी, यह दोपहर तक स्पष्ट होने लगेगा.
पांचों राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों के जो भी परिणाम होंगे, वो साल 2019 में होने वाले लोकसभा चुनावों की दिशा तय कर सकती है.
संसद का शीतकालीन सत्र
संसद में मंगलवार से शीतकालीन सत्र शुरू हो रहा है. इससे पहले सोमवार को विपक्षी दलों ने बैठक की. इसमें बसपा और सपा को छोड़ कर कुल 21 पार्टियां शामिल हुईं.
बैठक तेलुगू देशम पार्टी के प्रमुख एन. चंद्रबाबू नायडू ने बुलाई थी. बैठक में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा कि लक्ष्य भाजपा और उसके सहयोगी दलों को हराना है.
सत्र की पूर्व संध्या पर सर्वदलीय बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विपक्षी दलों को भरोसा दिलाया है कि सरकार सभी मुद्दों पर चर्चा करने के लिए तैयार है.
पेंशन निकालने पर नहीं लगेगा टैक्स
केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय पेंशन स्कीम में कई बदलाव किए हैं. वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा है कि सेवानिवृति के समय योजना से निकाली जाने वाली 60 फ़ीसदी राशि पर कोई टैक्स नहीं लगेगा
सरकार ने योजना में अपना योगदान 10 फ़ीसदी से बढ़ाकर 14 फ़ीसदी करने का फ़ैसला किया है. कोई कर्मचारी रिटायरमेंट के समय कुल जमा राशि का 60 फ़ीसदी निकालने का हक़दार होता है, वहीं 40 फ़ीसदी राशि पेंशन योजना में चली जाती है.
उनके इस्तीफ़े पर पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है. मनमोहन सिंह ने कहा है कि उर्जित का इस्तीफ़ा अर्थव्यवस्था पर गहरा आघात है.
पूर्व प्रधानमंत्री ने कहा, "उम्मीद है कि यह इस्तीफ़ा तीन खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था वाले संस्थान के आधार को नष्ट करने की शुरुआत नहीं होगी."
वहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, "पटेल ने बैंकिंग प्रणाली को अफ़रातफ़री से निकाल कर व्यवस्थित और अनुशासित बनाने का काम किया. वो एक पेशेवर व्यक्ति हैं, जिनकी निष्ठा बेदाग़ है."
राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिज़ोरम में हुए विधानसभा चुनावों की मतगणना आज यानी 11 दिसंबर की सुबह आठ बजे से शुरू होने जा रही है.
कुछ ही घंटों में रूझान मिलने शुरू हो जाएंगे. पांचों राज्यों में किसकी सरकार होगी, यह दोपहर तक स्पष्ट होने लगेगा.
पांचों राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों के जो भी परिणाम होंगे, वो साल 2019 में होने वाले लोकसभा चुनावों की दिशा तय कर सकती है.
संसद का शीतकालीन सत्र
संसद में मंगलवार से शीतकालीन सत्र शुरू हो रहा है. इससे पहले सोमवार को विपक्षी दलों ने बैठक की. इसमें बसपा और सपा को छोड़ कर कुल 21 पार्टियां शामिल हुईं.
बैठक तेलुगू देशम पार्टी के प्रमुख एन. चंद्रबाबू नायडू ने बुलाई थी. बैठक में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा कि लक्ष्य भाजपा और उसके सहयोगी दलों को हराना है.
सत्र की पूर्व संध्या पर सर्वदलीय बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विपक्षी दलों को भरोसा दिलाया है कि सरकार सभी मुद्दों पर चर्चा करने के लिए तैयार है.
पेंशन निकालने पर नहीं लगेगा टैक्स
केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय पेंशन स्कीम में कई बदलाव किए हैं. वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा है कि सेवानिवृति के समय योजना से निकाली जाने वाली 60 फ़ीसदी राशि पर कोई टैक्स नहीं लगेगा
सरकार ने योजना में अपना योगदान 10 फ़ीसदी से बढ़ाकर 14 फ़ीसदी करने का फ़ैसला किया है. कोई कर्मचारी रिटायरमेंट के समय कुल जमा राशि का 60 फ़ीसदी निकालने का हक़दार होता है, वहीं 40 फ़ीसदी राशि पेंशन योजना में चली जाती है.
Wednesday, November 21, 2018
मोदी के पास ही हैं सारे सवालों के जवाब| नज़रिया
विज्ञान के इस युग में जब मनुष्य की औसत आयु बढ़ रही हो, 66 वर्ष कुछ ज्यादा नहीं होते. और बात राजनीति की हो, तब तो बिल्कुल ही नहीं. पर भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ऐसा नहीं मानतीं. उन्होंने इसी उम्र में चुनाव न लड़ने की घोषणा कर दी है.
लोकसभा चुनाव से कुछ महीने पहले उनका यह कहना कि वे अगला लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेंगी, अप्रत्याशित पर अपेक्षित बात लगती है. अप्रत्याशित इसलिए कि जब उनकी ही पार्टी में अस्सी और नब्बे साल के नेताओं को रिटायरमेंट शब्द से ही एलर्जी हो उनकी यह घोषणा चौंकाती तो है. अपेक्षित इसलिए कहा कि उनके स्वास्थ्य के बारे में जो जानते हैं, वे पिछले कुछ समय से ऐसी किसी घेषणा की अपेक्षा कर रहे थे.
ऐसे लोगों में पहला नाम शायद उनके पति और पूर्व राज्यपाल स्वराज कौशल का है. सुषमा स्वराज की इस घोषणा के बाद उनके पति ने कहा कि 'एक समय के बाद मिल्खा सिंह ने भी दौड़ना बंद कर दिया था. आप तो पिछले 41 साल से चुनाव लड़ रही हैं.'
अगला लोकसभा चुनाव न लड़ने की घोषणा करके उन्होंने एक स्वस्थ्य परम्परा को आगे बढ़ाया है. हालांकि ऐसा करने वाले राजनीति में अब भी अपवाद स्वरूप ही हैं. इस तरह का पहला कदम उठाने वाले थे नानाजी देशमुख, जिन्होंने यह कह कर कि 'नेताओं को साठ साल की उम्र में रिटायर हो जाना चाहिए', रिटायर हो गए.
राजनीति की सुनील गावस्कर'
पर लाल कृष्ण आडवाणियों, मुरली मनोहर जोशियों, यशवंत सिन्हाओं और अरुण शौरियों के इस दौर में लगता है कि जिस तरह वे 25 साल की बाली उमर (राजनीति की दृष्टि से) में राजनीति में आई थीं उसी तरह बाली उमर में ही रिटायर हो रही हैं. ऐसे ऐसा करके उन्होंने अगर किसी को सबसे ज्यादा असहज किया है तो अपने राजनीतिक गुरु लाल कृष्ण आडवाणी को. पर इस एक घोषणा से सुषमा स्वराज भारतीय राजनीति की सुनील गावस्कर बन गई हैं. उनसे भी लोग वही सवाल करेंगे जो गावस्कर से पूछा थ कि 'अभी क्यों'.
सुषमा स्वराज एक प्रखर और ओजस्वी वक्ता, प्रभावी पार्लियामेंटेरियन और कुशल प्रशासक हैं. एक समय था जब भाजपा में अटल बिहारी वाजपेयी के बाद सुषमा और प्रमोद महाजन सबसे लोकप्रिय वक्ता थे. फिर बात संसद की हो या सड़क की. सुषमा स्वराज की गिनती भाजपा के डी(दिल्ली)-फ़ोर में होती थी. उनके अलावा बाकी तीन प्रमोद महाजन, अरुण जेतली और वेंकैया नायडू थे. भाजपा की दूसरी पीढ़ी के सभी नेताओं की तरह ये लोग भी अटल-आडवाणी और ख़ासतौर से आडवाणी के बढ़ाए हुए नेता हैं.
साल 2009 से 2014 तक लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष के रूप में सुषमा स्वराज का कार्यकाल उनके संसदीय जीवन का सर्वश्रेष्ठ काल था. साल 2006 में प्रमोद महाजन के निधन और लोकसभा में प्रतिपक्ष का नेता बनने के बाद माना जा रहा था कि भाजपा में प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवारों में उन्होंने बाजी मार ली है.
इन सब ख़ूबियों के बावजूद सुषमा स्वराज कभी भाजपा की अध्यक्ष नहीं बन पाईं. इसके दो कारण थे. एक, संगठन के काम की बजाय संसदीय कार्य में उनकी रुचि ज़्यादा थी. दूसरा, इस डी-फ़ोर में वे अकेली थीं जिनकी पृष्ठभूमि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की नहीं है. हालांकि उनके पिता संघ के प्रभावशाली लोगों में थे. पर उनके पति जॉर्ज फ़र्नांडिस के साथी थे जिन्हें जनता पार्टी में चंद्रशेखर और जॉर्ज फ़र्नांडिस ने बढ़ाया.
जनता पार्टी का विभाजन हुआ तो वे भाजपा में आ गईं. विभिन्न दलों में जो समाजवादी नेता हैं उनकी सहानुभूति और स्नेह सुषमा स्वराज को मिलता रहा है. अपने सहज स्वभाव से विरोधियों को निरुत्तर कर देने की उनकी क्षमता के कारण उनके पार्टी में जितने दोस्त हैं उससे कम बाहर नहीं हैं. पिछले चार दशकों में वे 11 चुनाव लड़ीं, जिसमें तीन बार विधानसभा का चुनाव लड़ीं.
लोकसभा चुनाव से कुछ महीने पहले उनका यह कहना कि वे अगला लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेंगी, अप्रत्याशित पर अपेक्षित बात लगती है. अप्रत्याशित इसलिए कि जब उनकी ही पार्टी में अस्सी और नब्बे साल के नेताओं को रिटायरमेंट शब्द से ही एलर्जी हो उनकी यह घोषणा चौंकाती तो है. अपेक्षित इसलिए कहा कि उनके स्वास्थ्य के बारे में जो जानते हैं, वे पिछले कुछ समय से ऐसी किसी घेषणा की अपेक्षा कर रहे थे.
ऐसे लोगों में पहला नाम शायद उनके पति और पूर्व राज्यपाल स्वराज कौशल का है. सुषमा स्वराज की इस घोषणा के बाद उनके पति ने कहा कि 'एक समय के बाद मिल्खा सिंह ने भी दौड़ना बंद कर दिया था. आप तो पिछले 41 साल से चुनाव लड़ रही हैं.'
अगला लोकसभा चुनाव न लड़ने की घोषणा करके उन्होंने एक स्वस्थ्य परम्परा को आगे बढ़ाया है. हालांकि ऐसा करने वाले राजनीति में अब भी अपवाद स्वरूप ही हैं. इस तरह का पहला कदम उठाने वाले थे नानाजी देशमुख, जिन्होंने यह कह कर कि 'नेताओं को साठ साल की उम्र में रिटायर हो जाना चाहिए', रिटायर हो गए.
राजनीति की सुनील गावस्कर'
पर लाल कृष्ण आडवाणियों, मुरली मनोहर जोशियों, यशवंत सिन्हाओं और अरुण शौरियों के इस दौर में लगता है कि जिस तरह वे 25 साल की बाली उमर (राजनीति की दृष्टि से) में राजनीति में आई थीं उसी तरह बाली उमर में ही रिटायर हो रही हैं. ऐसे ऐसा करके उन्होंने अगर किसी को सबसे ज्यादा असहज किया है तो अपने राजनीतिक गुरु लाल कृष्ण आडवाणी को. पर इस एक घोषणा से सुषमा स्वराज भारतीय राजनीति की सुनील गावस्कर बन गई हैं. उनसे भी लोग वही सवाल करेंगे जो गावस्कर से पूछा थ कि 'अभी क्यों'.
सुषमा स्वराज एक प्रखर और ओजस्वी वक्ता, प्रभावी पार्लियामेंटेरियन और कुशल प्रशासक हैं. एक समय था जब भाजपा में अटल बिहारी वाजपेयी के बाद सुषमा और प्रमोद महाजन सबसे लोकप्रिय वक्ता थे. फिर बात संसद की हो या सड़क की. सुषमा स्वराज की गिनती भाजपा के डी(दिल्ली)-फ़ोर में होती थी. उनके अलावा बाकी तीन प्रमोद महाजन, अरुण जेतली और वेंकैया नायडू थे. भाजपा की दूसरी पीढ़ी के सभी नेताओं की तरह ये लोग भी अटल-आडवाणी और ख़ासतौर से आडवाणी के बढ़ाए हुए नेता हैं.
साल 2009 से 2014 तक लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष के रूप में सुषमा स्वराज का कार्यकाल उनके संसदीय जीवन का सर्वश्रेष्ठ काल था. साल 2006 में प्रमोद महाजन के निधन और लोकसभा में प्रतिपक्ष का नेता बनने के बाद माना जा रहा था कि भाजपा में प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवारों में उन्होंने बाजी मार ली है.
इन सब ख़ूबियों के बावजूद सुषमा स्वराज कभी भाजपा की अध्यक्ष नहीं बन पाईं. इसके दो कारण थे. एक, संगठन के काम की बजाय संसदीय कार्य में उनकी रुचि ज़्यादा थी. दूसरा, इस डी-फ़ोर में वे अकेली थीं जिनकी पृष्ठभूमि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की नहीं है. हालांकि उनके पिता संघ के प्रभावशाली लोगों में थे. पर उनके पति जॉर्ज फ़र्नांडिस के साथी थे जिन्हें जनता पार्टी में चंद्रशेखर और जॉर्ज फ़र्नांडिस ने बढ़ाया.
जनता पार्टी का विभाजन हुआ तो वे भाजपा में आ गईं. विभिन्न दलों में जो समाजवादी नेता हैं उनकी सहानुभूति और स्नेह सुषमा स्वराज को मिलता रहा है. अपने सहज स्वभाव से विरोधियों को निरुत्तर कर देने की उनकी क्षमता के कारण उनके पार्टी में जितने दोस्त हैं उससे कम बाहर नहीं हैं. पिछले चार दशकों में वे 11 चुनाव लड़ीं, जिसमें तीन बार विधानसभा का चुनाव लड़ीं.
Tuesday, November 6, 2018
जयपुर में होगी नीलामी, ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड के खिलाड़ी केवल 1 मई तक उपलब्ध
बीसीसीआई या आईपीएल की ओर से किसी भी तरह की आधिकारिक सूचना टीमों को नहीं दी गई है लेकिन फ्रैंचाइजी के सूत्रों के मुताबिक, यह जानकारी उनसे गैरआधिकारिक तौर पर साझा की गई है।
विजय टैगोर, मुंबई
ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड के क्रिकेट बोर्डों ने बीसीसीआई को जानकारी दी है कि उनके खिलाड़ी अगले साल आयोजित होने वाले आईपीएल में 1 मई के बाद उपलब्ध नहीं होंगे। माना जा रहा है कि ऐसा वर्ल्ड कप को ध्यान में रखकर किया गया है जो 31 मई से इंग्लैंड में शुरू होगा।
बीसीसीआई या आईपीएल की ओर से किसी भी तरह की आधिकारिक सूचना टीमों को नहीं दी गई है लेकिन फ्रैंचाइजी के सूत्रों के मुताबिक, यह जानकारी उनसे गैरआधिकारिक तौर पर साझा की गई है। अन्य क्रिकेट बोर्ड ने हालांकि कोई खबर नहीं दी है लेकिन माना जा रहा है कि न्यू जीलैंड के खिलाड़ी लीग के अंत तक उपलब्ध रहेंगे।
29 मार्च से होगा शुरू!
लीग का शेड्यूल भी अभी तक जारी नहीं किया गया है लेकिन टूर्नमेंट के अगले साल 29 मार्च से शुरू होने की संभावना है जो मई के तीसरे सप्ताह तक चलेगा। ऐसे में माना जा रहा है कि इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया के खिलाड़ी करीब 3 सप्ताह तक उपलब्ध नहीं रहेंगे जिसमें प्ले-ऑफ के मैच भी शामिल हैं।
17 और 18 दिसंबर को नीलामी
इस बीच यह भी जानकारी मिली है कि आईपीएल के अगले एडिशन के लिए खिलाड़ियों की नीलामी इसी साल 17 और 18 दिसबंर को होगी। फ्रैंचाइजी टीमों को इस बारे में हाल में जानकारी दी गई है और बताया गया है कि ऑक्शन जयपुर में होगी।
साउथ अफ्रीका के प्लेयर 12 मई तक उपलब्ध
ऐसी भी खबरें हैं कि साउथ अफ्रीका के खिलाड़ी लीग में 12 मई तक उपलब्ध रहेंगे लेकिन इस पर कोई स्पष्ट सूचना नहीं है। यह भी खबर है कि लीग के अगले एडिशन का आयोजन साउथ अफ्रीका की मेजबानी में भी हो सकता है। बोर्ड को लीग ऑक्शन से पहले फ्रैंचाइजी टीमों को यह जानकारी देना जरूरी है कि मैच कहां-कहां खेले जाएंगे।
भारत में आयोजन पर अस्पष्टता
नीलामी की तारीख के बाद कुछ फ्रैंचाइजी टीमों की अलग-अलग प्रतिक्रिया रही हैं। देश में अगले साल होने वाले आम चुनावों को देखते हुए यह भी स्पष्ट नहीं है कि आईपीएल का अगला एडिशन भारत में ही होगा या इसे साउथ अफ्रीका और यूएई में आयोजित किया जाएगा, जैसा 2014 में आम चुनावों के कारण हुआ था।
फ्रैंचाइजी टीम के एक अधिकारी ने कहा, 'हम चाहते हैं कि ऑक्शन तभी हो, जब जगह का पता चल जाए ताकि हम खिलाड़ियों को उस हिसाब से चुन सकें लेकिन बीसीसीआई को भी टाइमलाइन को देखना है।' एक अन्य अधिकारी ने कहा कि नीलामी कहां होगी, इसका पता तो बाद में ही लगेगा। हालांकि आम चुनावों को देखते हुए तारीख बाद में ही पता चल पाएगी।
विजय टैगोर, मुंबई
ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड के क्रिकेट बोर्डों ने बीसीसीआई को जानकारी दी है कि उनके खिलाड़ी अगले साल आयोजित होने वाले आईपीएल में 1 मई के बाद उपलब्ध नहीं होंगे। माना जा रहा है कि ऐसा वर्ल्ड कप को ध्यान में रखकर किया गया है जो 31 मई से इंग्लैंड में शुरू होगा।
बीसीसीआई या आईपीएल की ओर से किसी भी तरह की आधिकारिक सूचना टीमों को नहीं दी गई है लेकिन फ्रैंचाइजी के सूत्रों के मुताबिक, यह जानकारी उनसे गैरआधिकारिक तौर पर साझा की गई है। अन्य क्रिकेट बोर्ड ने हालांकि कोई खबर नहीं दी है लेकिन माना जा रहा है कि न्यू जीलैंड के खिलाड़ी लीग के अंत तक उपलब्ध रहेंगे।
29 मार्च से होगा शुरू!
लीग का शेड्यूल भी अभी तक जारी नहीं किया गया है लेकिन टूर्नमेंट के अगले साल 29 मार्च से शुरू होने की संभावना है जो मई के तीसरे सप्ताह तक चलेगा। ऐसे में माना जा रहा है कि इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया के खिलाड़ी करीब 3 सप्ताह तक उपलब्ध नहीं रहेंगे जिसमें प्ले-ऑफ के मैच भी शामिल हैं।
17 और 18 दिसंबर को नीलामी
इस बीच यह भी जानकारी मिली है कि आईपीएल के अगले एडिशन के लिए खिलाड़ियों की नीलामी इसी साल 17 और 18 दिसबंर को होगी। फ्रैंचाइजी टीमों को इस बारे में हाल में जानकारी दी गई है और बताया गया है कि ऑक्शन जयपुर में होगी।
साउथ अफ्रीका के प्लेयर 12 मई तक उपलब्ध
ऐसी भी खबरें हैं कि साउथ अफ्रीका के खिलाड़ी लीग में 12 मई तक उपलब्ध रहेंगे लेकिन इस पर कोई स्पष्ट सूचना नहीं है। यह भी खबर है कि लीग के अगले एडिशन का आयोजन साउथ अफ्रीका की मेजबानी में भी हो सकता है। बोर्ड को लीग ऑक्शन से पहले फ्रैंचाइजी टीमों को यह जानकारी देना जरूरी है कि मैच कहां-कहां खेले जाएंगे।
भारत में आयोजन पर अस्पष्टता
नीलामी की तारीख के बाद कुछ फ्रैंचाइजी टीमों की अलग-अलग प्रतिक्रिया रही हैं। देश में अगले साल होने वाले आम चुनावों को देखते हुए यह भी स्पष्ट नहीं है कि आईपीएल का अगला एडिशन भारत में ही होगा या इसे साउथ अफ्रीका और यूएई में आयोजित किया जाएगा, जैसा 2014 में आम चुनावों के कारण हुआ था।
फ्रैंचाइजी टीम के एक अधिकारी ने कहा, 'हम चाहते हैं कि ऑक्शन तभी हो, जब जगह का पता चल जाए ताकि हम खिलाड़ियों को उस हिसाब से चुन सकें लेकिन बीसीसीआई को भी टाइमलाइन को देखना है।' एक अन्य अधिकारी ने कहा कि नीलामी कहां होगी, इसका पता तो बाद में ही लगेगा। हालांकि आम चुनावों को देखते हुए तारीख बाद में ही पता चल पाएगी।
महिंद्रा की नई एसयूवी Alturas G4 की बुकिंग शुरू
महिंद्रा ने जब से अपनी नई एसयूवी Mahindra Alturas G4 के बारे में घोषणा की है, तब से कार जगत में उसकी काफी चर्चा है। अब चर्चा है कि इसकी लॉन्चिंग 24 नवंबर को होगी
नई दिल्ली
महिंद्रा ने जब से अपनी नई एसयूवी Mahindra Alturas G4 के बारे में घोषणा की है, तब से कार जगत में उसकी काफी चर्चा है। अब चर्चा है कि इसकी लॉन्चिंग 24 नवंबर को होगी। कंपनी ने अभी से इसकी बुकिंग्स भी लेना शुरू कर दिया है। कंपनी ने इस नई एसयूवी को एक अलग नाम Alturas दिया है। माना जा रहा है कि महिंद्रा Alturas SUV लेटेस्ट जनरेशन SsangYong Rexton SUV पर बेस्ड है जो भारत में महिंद्रा XUV500 से ऊंचा मॉडल होगा।
Mahindra Alturas G4 दो वेरियंट में लॉन्च होगी। पहला वेरियंट लोअर-स्पेक G2 trim, 2WD है और दूसरा G4 4WD model है। इस एसयूवी में कंपनी 2.2 लीटर डीजल इंजन देगी। यह इंजन 180.5 एचपी पावर के साथ 450 न्यूटन मीटर टॉर्क जेनरेट करेगा। हालांकि इसमें कंपनी ने मैन्युअल गियर बॉक्स का ऑप्शन नहीं दिया है।
Mahindra Alturas में मर्सिडीज की तरह 7 स्पीड ऑटोमेटिक गियर बॉक्स दिया है। जो कि मैन्युअल शिफ्टिंग पर काम करेगा। महिंद्रा ने इस SUV को बिल्कुल फ्रेश लुक दिया है जो नई Rexton की तरह दिखती है। हालांकि इसके ग्रिल को महिंद्रा फैमिली लुक दिया गया है। कंपनी ने फ्रेम कंस्ट्रक्शन में कुछ बदलाव के साथ इसे और अपग्रेड किया है। कंपनी ने इसे अपने नए फ्लैगशिप मॉडल के रूप में पेश किया है। कंपनी के करीबी सूत्र का कहना है कि Mahindra ने Alturas फाइनल नाम दिया है अपनी नई एसयूवी को। Alturas का अर्थ होता है ऊंचाई। माना जा रहा है कि इस नाम के साथ कंपनी एसयूवी के बाजार में नई ऊंचाइयां स्थापित करने के बारे में सोच रही है। Alturas Toyota Fortuner और Ford Endeavour जैसी कारों को टक्कर देने के बारे में सोच रही है।
कार के शौकीन लोगों ने नई Hyundai Santro का स्वागत बड़े जबर्दस्त तरीके से किया है। कार बाजार के विश्वस्त सूत्रों से खबर मिली है कि 4 नवंबर तक बुकिंग्स का आंकड़ा 30 हजार के पार जा चुका है। लोगों को Hyundai की यह स्मॉल हैचबैक काफी पसंद आ रही है। कंपनी ने 23 अक्टूबर को कार की ऑफिशल लॉन्चिंग से पहले ही 10 अक्टूबर को ऑनलाइन बुकिंग्स शुरू
उसके बाद से लोगों ने नई Hyundai Santro में खासी दिलचस्पी दिखाई है। खास तौर पर लोगों को इसका ऑटोमेटिक वर्जन काफी पसंद आ रहा है। कुल बुकिंग्स में अकेले एएमटी वर्जन का हिस्सा 30 फीसदी है। यहां तक कि कंपनी के अपने अनुमान से भी बहुत ज्यादा है। कार यूजर्स को इसके सीएनजी वर्जन में भी इंट्रेस्ट शो कर रहे हैं। कंपनी को सीएनजी वर्जन की कुल 21 फीसदी बुकिंग्स मिली हैं। जबकि पेट्रोल वर्जन को सबसे ज्यादा 49 फीसदी बुकिंग्स मिली हैं।
इसके बेस वर्जन ट्रिम D-Lite की शुरुआत 3.89 lakh (एक्सशोरूम) हो रही है। इसका टॉप वर्जन Asta trim केवल पेट्रोल मैन्युअल में उपलब्ध है। पावर की बात करें, तो नई ह्यूंदै सैंट्रो में 1.1 लीटर 4-सिलिंडर पेट्रोल इंजन दिया गया है, जो 69 PS की पावर और 99 Nm टॉर्क जनरेट करता है। सैंट्रो का सीएनजी मोटर 58 bhp की पावर और 84 nm टॉर्क जनरेट करता है।
नई दिल्ली
महिंद्रा ने जब से अपनी नई एसयूवी Mahindra Alturas G4 के बारे में घोषणा की है, तब से कार जगत में उसकी काफी चर्चा है। अब चर्चा है कि इसकी लॉन्चिंग 24 नवंबर को होगी। कंपनी ने अभी से इसकी बुकिंग्स भी लेना शुरू कर दिया है। कंपनी ने इस नई एसयूवी को एक अलग नाम Alturas दिया है। माना जा रहा है कि महिंद्रा Alturas SUV लेटेस्ट जनरेशन SsangYong Rexton SUV पर बेस्ड है जो भारत में महिंद्रा XUV500 से ऊंचा मॉडल होगा।
Mahindra Alturas G4 दो वेरियंट में लॉन्च होगी। पहला वेरियंट लोअर-स्पेक G2 trim, 2WD है और दूसरा G4 4WD model है। इस एसयूवी में कंपनी 2.2 लीटर डीजल इंजन देगी। यह इंजन 180.5 एचपी पावर के साथ 450 न्यूटन मीटर टॉर्क जेनरेट करेगा। हालांकि इसमें कंपनी ने मैन्युअल गियर बॉक्स का ऑप्शन नहीं दिया है।
Mahindra Alturas में मर्सिडीज की तरह 7 स्पीड ऑटोमेटिक गियर बॉक्स दिया है। जो कि मैन्युअल शिफ्टिंग पर काम करेगा। महिंद्रा ने इस SUV को बिल्कुल फ्रेश लुक दिया है जो नई Rexton की तरह दिखती है। हालांकि इसके ग्रिल को महिंद्रा फैमिली लुक दिया गया है। कंपनी ने फ्रेम कंस्ट्रक्शन में कुछ बदलाव के साथ इसे और अपग्रेड किया है। कंपनी ने इसे अपने नए फ्लैगशिप मॉडल के रूप में पेश किया है। कंपनी के करीबी सूत्र का कहना है कि Mahindra ने Alturas फाइनल नाम दिया है अपनी नई एसयूवी को। Alturas का अर्थ होता है ऊंचाई। माना जा रहा है कि इस नाम के साथ कंपनी एसयूवी के बाजार में नई ऊंचाइयां स्थापित करने के बारे में सोच रही है। Alturas Toyota Fortuner और Ford Endeavour जैसी कारों को टक्कर देने के बारे में सोच रही है।
कार के शौकीन लोगों ने नई Hyundai Santro का स्वागत बड़े जबर्दस्त तरीके से किया है। कार बाजार के विश्वस्त सूत्रों से खबर मिली है कि 4 नवंबर तक बुकिंग्स का आंकड़ा 30 हजार के पार जा चुका है। लोगों को Hyundai की यह स्मॉल हैचबैक काफी पसंद आ रही है। कंपनी ने 23 अक्टूबर को कार की ऑफिशल लॉन्चिंग से पहले ही 10 अक्टूबर को ऑनलाइन बुकिंग्स शुरू
उसके बाद से लोगों ने नई Hyundai Santro में खासी दिलचस्पी दिखाई है। खास तौर पर लोगों को इसका ऑटोमेटिक वर्जन काफी पसंद आ रहा है। कुल बुकिंग्स में अकेले एएमटी वर्जन का हिस्सा 30 फीसदी है। यहां तक कि कंपनी के अपने अनुमान से भी बहुत ज्यादा है। कार यूजर्स को इसके सीएनजी वर्जन में भी इंट्रेस्ट शो कर रहे हैं। कंपनी को सीएनजी वर्जन की कुल 21 फीसदी बुकिंग्स मिली हैं। जबकि पेट्रोल वर्जन को सबसे ज्यादा 49 फीसदी बुकिंग्स मिली हैं।
इसके बेस वर्जन ट्रिम D-Lite की शुरुआत 3.89 lakh (एक्सशोरूम) हो रही है। इसका टॉप वर्जन Asta trim केवल पेट्रोल मैन्युअल में उपलब्ध है। पावर की बात करें, तो नई ह्यूंदै सैंट्रो में 1.1 लीटर 4-सिलिंडर पेट्रोल इंजन दिया गया है, जो 69 PS की पावर और 99 Nm टॉर्क जनरेट करता है। सैंट्रो का सीएनजी मोटर 58 bhp की पावर और 84 nm टॉर्क जनरेट करता है।
Monday, November 5, 2018
कश्मीरी छात्र के आईएस में शामिल होने की ख़बर पर मां-बाप हैरान: ग्राउंड रिपोर्ट
शुक्रवार की रात सोशल मीडिया पर छह मिनट का एक ऑडियो और एक तस्वीर वायरल हो गई.
इस तस्वीर में एक लड़का दिख रहा था. उसके जिस्म पर हथियार और बारूद बंधा हुआ था. बैकग्राउंड में कथित इस्लामिक स्टेट यानी आईएस का झंडा दिख रहा था.
वायरल हुई ये तस्वीर 19 बरस के एहतेशाम बिलाल की है. तस्वीर में उनके सिर पर काली पगड़ी बंधी है, जैसा कि कथित इस्लामिक स्टेट के चरमपंथियों के सिर पर दिखा करता है.
तस्वीर में पीछे जो झंडा दिख रहा है उस पर ISJK लिखा दिख रहा है.
इस तस्वीर पर एहतेशाम बिलाल लिखा हुआ है.
छह मिनट का जो ऑडियो वायरल हुआ वो उर्दू में है.
इस ऑडियो में एहतेशाम कश्मीर में इस्लामी हुकूमत कायम करने की बात करते हैं. साथ ही वो कुरान की कुछ आयतें भी पढ़ते हैं.
कौन हैं एहतेशाम?
भारत प्रशासित कश्मीर के खानयार इलाके के रहने वाले एहतेशाम बिलाल दिल्ली से सटे नोएडा की एक प्राइवेट यूनिवर्सिटी में बीएमआईटी के छात्र हैं.
उनके पिता बिलाल अहमद सोफी की एहतेशाम से आखिरी बार 28 अक्तूबर 2018 को तब बात हुई थी जब एहतेशाम नोएडा में अपनी यूनिवर्सिटी से दिल्ली के लिए निकले थे. उसके बाद से उनका घरवालों से कोई संपर्क नहीं है.
बीती 4 अक्तूबर को यूनिवर्सिटी कैंपस में कुछ छात्रों ने यूनिवर्सिटी के कुछ अन्य छात्रों को कथित रूप से पीटा था जिसमें एहतेशाम भी घायल हो गए थे.
सदमे में हैं एहतेशाम के माता-पिता
एहतेशाम के गायब होने के बाद से उनकी मां इरफ़ाना बहुत बीमार हैं. दो दिन पहले जब वो श्रीनगर के प्रेस एनक्लेव में अपने परिवार के साथ प्रदर्शन करने आईं थीं तो उनके बाजू में ग्लूकोज़ की बोतल लगी थी. पिता बिलाल अहमद का भी तब से बुरा हाल है.
बिलाल अहमद पेशे से एक दुकानदार हैं. खानयार इलाके में उनकी अपनी दुकान है.
हालांकि एहतेशाम के पिता और मां वायरल ऑडियो की पुष्टि नहीं कर रहे हैं, लेकिन उनकी ख़ैर-ख़बर नहीं होने से बेहद परेशान हैं. उनका ये भी कहना है कि अगर एहतेशाम चरमपंथियों के साथ चला भी गया है तो हम उनसे अपील करते हैं कि वो घर वापस आ जाएं और सभी चरमपंथी संगठनों से अपील करते हैं कि उन्हें घर आने दिया जाए.
एहतेशाम की मां इरफ़ाना कहती हैं, "वो मेरे बेटे की आवाज़ नहीं है. क्या मैं नहीं जानती हूं कि मेरे बेटे की आवाज़ कैसी है. एहतेशाम जहां भी है, जिसके पास भी है, मैं सभी संगठनों से अपील करती हूं कि उसको छोड़ दिया जाए."
ये कहते-कहते वो रोने लगती हैं और फिर बोलती हैं, "एहतेशाम हमारे पूरे परिवार का इकलौता लड़का है. अगर वो वापस नहींआएगा, फिर हमारी देख-रेख कौन करेगा. मैं हाथ जोड़ कर माफ़ी मांगती हूं... मेरे बेटे को छोड़ा जाए."
माता-पिता ने चरमपंथियों से की अपील
रोती बिलखती इरफ़ाना आगे कहती हैं, "मैं एहतेशाम से भी कहती हूं कि अगर मुझसे कोई ग़लती हो गई है तो मुझे माफ़ करो. एहतेशाम तुम लौट के वापस आ जाओ. हम सब तो जैसे मर ही गए हैं. अगर उसको कुछ हुआ तो यहां घर में कोई नहीं बच सकेगा. जिनके पास भी एहतेशाम है, वो एहतेशाम के साथ हमारे पास आए और हम सबको मार डालें और फिर वो फ़ैसला करें कि एहतेशाम के साथ क्या कर सकते हैं. मैं सबसे अपील करती हूं कि एहतेशाम को सुरक्षित घर वापस भेजें."
एहतेशाम के पिता बिलाल अहमद कहते हैं कि जिस क़िस्म की उर्दू ऑडियो क्लिप में है, वैसी उर्दू एहतेशाम नहीं बोल पाता है.
उन्होंने कहा, "नहीं, मुझे नहीं लगता है कि ये एहतेशाम का ऑडियो है. जैसे वो ऑडियो में बोल रहा है, वैसे तो एक स्कॉलर ही बोल सकता है या कोई मंझा हुआ सियासतदान. वो तो छोटा सा बच्चा है और ये इतनी लंबी स्पीच है, मुझे नहीं लगता कि ये एहतेशाम है."
बिलाल अहमद कहते हैं कि सोशल मीडिया कह रहा है कि मेरा बेटा चरमपंथी बन गया है, लेकिन मैं कहता हूं कि एहतेशाम का चरमपंथ की तरफ रुझान था ही नहीं.
बिलाल अहमद आगे कहते हैं, "खुदा करे, अगर एहतेशाम चरमपंथी बन भी गया है तो मैं आपके माध्यम से जिस किसी संगठन के पास भी वो है, उनसे अपील करता हूं कि वो उसको वापस भेजें. हम चार भाई हैं और हम चार भाइयों का ये एक ही लड़का है, चार माओं का एक ही लड़का है. हमारी हालात बहुत ख़राब है. मां भी तब से बीमार है, मैं भी बीमार हूं."
इस तस्वीर में एक लड़का दिख रहा था. उसके जिस्म पर हथियार और बारूद बंधा हुआ था. बैकग्राउंड में कथित इस्लामिक स्टेट यानी आईएस का झंडा दिख रहा था.
वायरल हुई ये तस्वीर 19 बरस के एहतेशाम बिलाल की है. तस्वीर में उनके सिर पर काली पगड़ी बंधी है, जैसा कि कथित इस्लामिक स्टेट के चरमपंथियों के सिर पर दिखा करता है.
तस्वीर में पीछे जो झंडा दिख रहा है उस पर ISJK लिखा दिख रहा है.
इस तस्वीर पर एहतेशाम बिलाल लिखा हुआ है.
छह मिनट का जो ऑडियो वायरल हुआ वो उर्दू में है.
इस ऑडियो में एहतेशाम कश्मीर में इस्लामी हुकूमत कायम करने की बात करते हैं. साथ ही वो कुरान की कुछ आयतें भी पढ़ते हैं.
कौन हैं एहतेशाम?
भारत प्रशासित कश्मीर के खानयार इलाके के रहने वाले एहतेशाम बिलाल दिल्ली से सटे नोएडा की एक प्राइवेट यूनिवर्सिटी में बीएमआईटी के छात्र हैं.
उनके पिता बिलाल अहमद सोफी की एहतेशाम से आखिरी बार 28 अक्तूबर 2018 को तब बात हुई थी जब एहतेशाम नोएडा में अपनी यूनिवर्सिटी से दिल्ली के लिए निकले थे. उसके बाद से उनका घरवालों से कोई संपर्क नहीं है.
बीती 4 अक्तूबर को यूनिवर्सिटी कैंपस में कुछ छात्रों ने यूनिवर्सिटी के कुछ अन्य छात्रों को कथित रूप से पीटा था जिसमें एहतेशाम भी घायल हो गए थे.
सदमे में हैं एहतेशाम के माता-पिता
एहतेशाम के गायब होने के बाद से उनकी मां इरफ़ाना बहुत बीमार हैं. दो दिन पहले जब वो श्रीनगर के प्रेस एनक्लेव में अपने परिवार के साथ प्रदर्शन करने आईं थीं तो उनके बाजू में ग्लूकोज़ की बोतल लगी थी. पिता बिलाल अहमद का भी तब से बुरा हाल है.
बिलाल अहमद पेशे से एक दुकानदार हैं. खानयार इलाके में उनकी अपनी दुकान है.
हालांकि एहतेशाम के पिता और मां वायरल ऑडियो की पुष्टि नहीं कर रहे हैं, लेकिन उनकी ख़ैर-ख़बर नहीं होने से बेहद परेशान हैं. उनका ये भी कहना है कि अगर एहतेशाम चरमपंथियों के साथ चला भी गया है तो हम उनसे अपील करते हैं कि वो घर वापस आ जाएं और सभी चरमपंथी संगठनों से अपील करते हैं कि उन्हें घर आने दिया जाए.
एहतेशाम की मां इरफ़ाना कहती हैं, "वो मेरे बेटे की आवाज़ नहीं है. क्या मैं नहीं जानती हूं कि मेरे बेटे की आवाज़ कैसी है. एहतेशाम जहां भी है, जिसके पास भी है, मैं सभी संगठनों से अपील करती हूं कि उसको छोड़ दिया जाए."
ये कहते-कहते वो रोने लगती हैं और फिर बोलती हैं, "एहतेशाम हमारे पूरे परिवार का इकलौता लड़का है. अगर वो वापस नहींआएगा, फिर हमारी देख-रेख कौन करेगा. मैं हाथ जोड़ कर माफ़ी मांगती हूं... मेरे बेटे को छोड़ा जाए."
माता-पिता ने चरमपंथियों से की अपील
रोती बिलखती इरफ़ाना आगे कहती हैं, "मैं एहतेशाम से भी कहती हूं कि अगर मुझसे कोई ग़लती हो गई है तो मुझे माफ़ करो. एहतेशाम तुम लौट के वापस आ जाओ. हम सब तो जैसे मर ही गए हैं. अगर उसको कुछ हुआ तो यहां घर में कोई नहीं बच सकेगा. जिनके पास भी एहतेशाम है, वो एहतेशाम के साथ हमारे पास आए और हम सबको मार डालें और फिर वो फ़ैसला करें कि एहतेशाम के साथ क्या कर सकते हैं. मैं सबसे अपील करती हूं कि एहतेशाम को सुरक्षित घर वापस भेजें."
एहतेशाम के पिता बिलाल अहमद कहते हैं कि जिस क़िस्म की उर्दू ऑडियो क्लिप में है, वैसी उर्दू एहतेशाम नहीं बोल पाता है.
उन्होंने कहा, "नहीं, मुझे नहीं लगता है कि ये एहतेशाम का ऑडियो है. जैसे वो ऑडियो में बोल रहा है, वैसे तो एक स्कॉलर ही बोल सकता है या कोई मंझा हुआ सियासतदान. वो तो छोटा सा बच्चा है और ये इतनी लंबी स्पीच है, मुझे नहीं लगता कि ये एहतेशाम है."
बिलाल अहमद कहते हैं कि सोशल मीडिया कह रहा है कि मेरा बेटा चरमपंथी बन गया है, लेकिन मैं कहता हूं कि एहतेशाम का चरमपंथ की तरफ रुझान था ही नहीं.
बिलाल अहमद आगे कहते हैं, "खुदा करे, अगर एहतेशाम चरमपंथी बन भी गया है तो मैं आपके माध्यम से जिस किसी संगठन के पास भी वो है, उनसे अपील करता हूं कि वो उसको वापस भेजें. हम चार भाई हैं और हम चार भाइयों का ये एक ही लड़का है, चार माओं का एक ही लड़का है. हमारी हालात बहुत ख़राब है. मां भी तब से बीमार है, मैं भी बीमार हूं."
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