तेनुडीह के विनोद राम किसान हैं. खेत में हुई उपज उनकी आमदनी का मुख्य ज़रिया है.
इससे होने वाली कमाई से उनकी और उनके परिवार की ज़रूरतें पूरी होती हैं. लेकिन, इन दिनों वे पूजा भी कराने लगे हैं.
अपने गांव के शिव मंदिर में उनकी भूमिका मुख्य पुजारी की है. यहां सुबह-शाम होने वाली आरती में गांव भर के लोग शामिल होते हैं.
पूजा कराने का काम अब विनोद राम के ज़िम्मे है. उन्होंने बजाप्ता इसकी ट्रेनिंग ली है.
विनोद राम अनुसूचित जाति (एससी) से ताल्लुक रखते हैं. विनोद राम का गांव पलामू ज़िले के छतरपुर में है.
उन्होंने बताया कि इस इलाक़े के वैसे कई लोगों ने पुजारी बनने की ट्रेनिंग ली है, जो ब्राह्मण न होकर दूसरी जातियों के हैं.
पारंपरिक ब्राह्मणवादी व्यवस्था
ट्रेनिंग के बाद ऐसे लोग अपने-अपने गांवों में पुजारी मतलब 'पंडित जी' बन गए हैं.
गांव के दूसरे लोग इनकी पूजा में शामिल हो रहे हैं और इनके बताए मंत्र पढ़कर अपने घरों में पूजा कर रहे हैं.
ऐसे लोगों में इसी थाना क्षेत्र के गांव सहरसवा के नाथजी यादव भी शामिल हैं.
तो क्या ये पूजापाठ की पारंपरिक ब्राह्मणवादी व्यवस्था को चुनौती है?
नाथजी यादव कहते हैं, "इसे आप चुनौती के तौर पर मत लीजिए. यह तो एक तरह का सामाजिक समझौता है. इसमें मानवता निहित है."
"हमलोग एक समाज में रहते हैं. हर मानव को एक समान अधिकार है. हमारे पुजारी बनने पर किसी को क्यों एतराज होगा."
लेकिन वरिष्ठ पत्रकार मधुकर इसे नाटक क़रार देते हैं. उनका कहना है कि जाति तोड़ने की पहल डॉक्टर राममनोहर लोहिया और जयप्रकाश नारायण ने की थी.
"अगर विश्व हिंदू परिषद सच में जाति तोड़ना चाहता है, तो उसे ऐसा उदाहरण भी प्रस्तुत करना होगा, जहां दलित पुजारी और ब्राह्मण यजमान हो."
और यहां सवाल ये भी उठता है कि क्या ब्राह्मण ग़ैर ब्राह्मणों की कराई गई पूजा को मानते हैं?
इस सवाल के जवाब में नाथजी यादव कहते हैं, "हमारे गांव में ब्राह्मण है ही नहीं इसलिए ये पता नही चल सका कि ब्राह्मण हमारी पूजा को स्वीकार करेंगे या नहीं."
क़रीब 300 घरों वाले नाथजी यादव के गांव में रहने वाले अधिकतर लोग पिछड़ी और अनुसूचित जातियों के हैं
विहिप ने दिलाई ट्रेनिंग
इसी तरह विनोद राम के गांव में भी ज़्यादातर आबादी ऐसी ही जातियों की है.
पुजारी की ट्रेनिंग पाकर मंदिरों के प्रमुख बने निर्मल राम, संजय दास गोस्वामी जैसे लोगों की भी यही सामाजिक स्थिति है.
उनके गांवों में ज़्यादातर आबादी पिछड़ी जाति, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों की है.
लिहाजा, गांव के लोगों को अपने वर्ग के किसी व्यक्ति के पुजारी बनने पर ख़ुशी है.
दरअसल, विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) की प्रांतीय इकाई ने अपने एक अभियान के तहत झारखंड के 52 लोगों को पुजारी बनने की ट्रेनिंग दिलाई है.
प्रशिक्षण शिविर
वीएचपी अब महिलाओं को भी ट्रेनिंग देने की योजना पर काम कर रहा है ताकि आने वाले समय में महिलाएं भी मंदिरों का संचालन कर सकें.
विश्व हिंदू परिषद के झारखंड उपाध्यक्ष चंद्रकांत रायपत कहते हैं, "पुजारी की ट्रेनिंग देते वक़्त हम लोगों ने जाति-बिरादरी की बात सोची ही नहीं."
"ट्रेनिंग लेने वाले लोगों में ब्राह्मण, क्षत्रीय, वैश्य और शूद्र हर वर्ग के लोग हैं. इन्हें उनके गांव के लोगों ने ही चुनकर भेजा था. लिहाजा, उनकी स्वीकार्यता को लेकर कोई परेशानी नहीं है."
"ये सब लोग अपने-अपने गांवों में पहले से पूजा कराते थे. हमलोगों ने सिर्फ़ उन्हें पूजा कराने की विधि बताई है ताकि पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक मंदिरों का संचालन किया जा सके. अब हमलोग हर ज़िले में ऐसे प्रशिक्षण शिविर लगवाएंगे."
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