Sunday, March 31, 2019

चुनाव से आगे क्यों नहीं देख पाते नेता, क्या लोकतंत्र को नया करने की है ज़रूरत?

स्कॉटलैंड के दार्शनिक डेविड ह्यूम ने 1739 में लिखा था, "नागरिक सरकार की उत्पत्ति के मूल में यह है मनुष्य उस संकीर्णता को दूर करने में सक्षम नहीं है, जो उसे भविष्य के मुक़ाबले वर्तमान को पसंद करने के लिए तैयार करती है."

ह्यूम मानते थे कि सरकार के संस्थान- जैसे राजनीतिक प्रतिनिधि और संसदीय बहस हमारी आवेगी और स्वार्थी इच्छाओं को कम करेंगे और समाज के दीर्घकालिक हितों की पूर्ति करेंगे.

आज ह्यूम के विचार ख़याली पुलाव लगते हैं. हमारी राजनीतिक प्रणालियां हमें आगे की सोचने ही नहीं देतीं.

कई राजनेता अगले चुनाव से आगे देख नहीं पाते और नये जनमत सर्वेक्षण या नये ट्वीट की धुन पर ही नाचते रहते हैं.

सरकारें तुरंत समाधान चाहती हैं, जैसे अपराध के सामाजिक और आर्थिक कारणों की गहराई में जाकर उनका उपाय ढूंढ़ने की जगह अपराधियों को सलाखों के पीछे पहुंचा देना.

अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों में जमा होने वाले देश भी निकट अवधि के मुद्दों और हितों पर ध्यान लगाते हैं, भले ही धरती गर्म होती रहे और प्रजातियां विलुप्त होती रहें.

जिस तरह चौबीसों घंटे चलने वाले समाचार माध्यम ब्रक्सिट वार्ता के नये मोड़ या अमरीकी राष्ट्रपति की किसी टिप्पणी पर चर्चा को घुमाते रहते हैं, उसी तरह आधुनिक लोकतांत्रिक राजनीति ज़्यादा दूर तक नहीं देख पा रही.

तो क्या वर्तमान में जीने वाली इस राजनीतिक प्रणाली को दुरुस्त करने का कोई उपाय है, जिसने भावी पीढ़ियों के हितों को स्थायी रूप से किनारे लगा दिया है?

यह दावा करना आम है कि आज वर्तमानवाद में सोशल मीडिया और अन्य डिजिटल तकनीकों की वजह से है, जिसने राजनीतिक जीवन की गति को बढ़ा दिया है.

असल में वर्तमान के साथ चिपके रहने की जड़ें बहुत गहरी हैं. बार-बार होने वाले चुनाव राजनीतिक विमर्श को वर्तमान में समेट कर रखते हैं.

राजनेता अगले चुनाव में वोटरों को लुभाने के लिए टैक्स छूट की पेशकश करते हैं और दीर्घकालिक मुद्दों, जैसे पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान, पेंशन सुधार या बच्चों की शिक्षा में निवेश की अनदेखी कर देते हैं, क्योंकि उनसे उनको तुरंत राजनीतिक फ़ायदा नहीं होता.

1970 के दशक में अदूरदर्शी नीति-निर्माण को 'राजनीतिक व्यापार चक्र' कहा जाता था.

विशेष हित रखने वाले समूह, जैसे कॉरपोरेट निगम, राजनीतिक तंत्र का इस्तेमाल अपने निकट लाभों को सुरक्षित रखने के लिए करते हैं और लंबी अवधि की लागत को समाज के अन्य हिस्सों पर डाल देते हैं.

चुनाव अभियानों की फ़ंडिंग के ज़रिये हो या लॉबिंग में पैसे ख़र्च करके, बड़ी कंपनियां राजनीतिक तंत्र को हथिया लेती हैं. दुनिया भर में ऐसा हो रहा है. इससे दीर्घकालिक नीति निर्माण का एजेंडा नहीं बन पाता.

भावी नागरिकों को कोई अधिकार नहीं होते, न ही कल को प्रभावित करने वाले फ़ैसलों में उनकी चिंताओं या संभावित विचारों को रखने वाला कोई होता है.

लोकतांत्रिक प्रशासन में विशेषज्ञता रखने वाले राजनीतिक वैज्ञानिक के रूप में बिताए एक दशक के दौरान मुझे यह कभी नहीं लगा कि भावी पीढ़ियों को मताधिकार से उसी तरह वंचित किया गया है जैसी अतीत में ग़ुलामों या महिलाओं को किया गया था. लेकिन यह हक़ीक़त है.

इसीलिए स्वीडन के किशोर ग्रेटा थुनबर्ग से प्रेरित होकर दुनिया भर के लाखों स्कूली बच्चों ने अमीर देशों को कार्बन उत्सर्जन कम करने के लिए मनाने के लिए हड़ताल और मार्च किया.

लोकतांत्रिक प्रणालियों में उनकी आवाज़ को सुनने वाला कोई नहीं है और राजनीतिक परिदृश्य में उनके भविष्य के लिए कोई जगह नहीं है.

एक और कड़वी हक़ीक़त का सामना करने का समय आ गया है कि आधुनिक लोकतंत्र ने, ख़ासकर अमीर देशों में, हमें भविष्य को उपनिवेश बनाने में सक्षम बना दिया है.

हम भविष्य के साथ ऐसे व्यवहार करते हैं जैसे वह दूर स्थित कोई उपनिवेश हो, जिस पर हम पारिस्थितिकी क्षरण, तकनीकी जोखिम, परमाणु कचरे और सार्वजनिक कर्ज़ का बोझ डालकर अपनी मर्ज़ी से उसका दोहन कर सकें.

ब्रिटेन ने 18वीं और 19वीं सदी में जब ऑस्ट्रेलिया को अपना उपनिवेश बनाया तब उसने एक क़ानूनी सिद्धांत का सहारा लिया था. उसे अब 'टेरा नलियस' कहा जाता है. इसका अर्थ है किसी की भूमि नहीं.

ब्रिटेन ने ऑस्ट्रेलिया के मूल वासियों के साथ ऐसा सलूक किया मानो उनका अस्तित्व ही न हो या वहां की ज़मीन पर उनका कोई दावा ही न हो.

आज हमारा व्यवहार 'टेंपस नलियस' की तरह है. भविष्य 'ख़ाली समय' या लावारिस इलाक़ा है जहां कोई बाशिंदा नहीं है. साम्राज्य के दूर के इलाक़ों की तरह यह हमारा है और इसका दोहन किया जा सकता है.

हमारे सामने चुनौती है कि लोकतंत्र को फिर से नया किया जाए ताकि वह वर्तमानवाद से उबर सके और भविष्य को उपनिवेश समझकर होने वाली भावी पीढ़ियों के संसाधनों की चोरी को रोका जा सके.

कुछ लोगों का कहना है कि लोकतंत्र बुनियादी रूप से अदूरदर्शी है और उदार तानाशाह मानवता के सामने आए कई संकटों पर दूरदृष्टि के साथ सोच सकते हैं.

ऐसा सोचने वालों में ब्रिटेन के मशहूर खगोलशास्त्री मार्टिन रीस भी हैं, जिन्होंने लिखा है कि जलवायु परिवर्तन और जैविक अस्त्रों के प्रसार जैसी दीर्घकालिक चुनौतियां से 21वीं सदी को सुरक्षित बनाने का रास्ता केवल एक प्रबुद्ध तानाशाह ही निकाल सकता है.

हाल में एक सार्वजनिक मंच पर जब मैंने उनसे पूछा कि क्या वर्तमानवाद से निपटने के लिए वह अधिनायकवाद का नुस्खा बता रहे हैं या क्या यह उनका मजाक था, तब उन्होंने कहा कि वास्तव में वह अर्ध-गंभीर थे.

रीस ने चीन का उदाहरण दिया जो वाम अधिनायकवादी शासन के कारण दीर्घकालिक नियोजन में सफल रहा. सौर ऊर्जा के क्षेत्र में भारी निवेश इसी का परिणाम है.

आश्चर्यजनक रूप से कई श्रोता रीस के समर्थन में सिर हिला रहे थे, हालांकि मैं उनमें नहीं था.

इतिहास में ऐसे उदाहरण कम ही मिलते हैं कि उदार तानाशाह लंबे समय तक प्रबुद्ध रहे हों. मिसाल के लिए, चीन के मानवाधिकारों के रिकॉर्ड देख लीजिए.

इस बात के भी सबूत नहीं हैं कि दीर्घकालिक सोच और नियोजन में अधिनायकवादी शासन का रिकॉर्ड लोकतांत्रिक शासन से बेहतर रहा हो.

स्वीडन में लोकतंत्र होने पर भी ज़रूरत की 60 फ़ीसदी बिजली नवीकरण ऊर्जा स्रोतों से बनती है, जबकि चीन में 26 फ़ीसदी बिजली ही ऐसे बनती है.

प्रतिनिधि लोकतंत्र को वर्तमान के प्रति इसके पूर्वाग्रहों से मुक्त करने के तरीक़े हो सकते हैं. वास्तव में, कई देशों ने भविष्य के नागरिकों को सशक्त बनाने के लिए प्रयोग शुरू कर दिए हैं.

Tuesday, March 19, 2019

लोकसभा चुनाव 2019: घमंड में डूबी कांग्रेस आख़िर बीजेपी को ही जिता देगी- नज़रिया

ये पंक्ति कांग्रेस के उसके सहयोगी दलों के प्रति रवैये पर कुछ ज़्यादा ही फ़िट बैठती है.

मौजूदा वक़्त में कांग्रेस के सभी सहयोगी दल उस पर सहयोग न करने का आरोप लगा रहे हैं. उनका कहना है कि कांग्रेस का रवैया अभी इतना बुरा है कि लोकसभा चुनाव से पहले ये विपक्षी पार्टियों की एकता को कमज़ोर कर रहा है.

एक ओर जहां विपक्षी पार्टियां मिलकर बीजेपी को हराना चाहती हैं वहीं कहा ये जा रहा है कि इस मक़सद को हासिल करने में सबसे बड़ी चुनौती ख़ुद कांग्रेस पार्टी ही है.

बहुजन समाज पार्टी (बसपा) प्रमुख मायावती और उनके सहयोगी अखिलेश यादव ने मंगलवार को कांग्रेस पर उत्तर प्रदेश में मतदाताओं के बीच 'भ्रम की स्थिति' फैलाने का आरोप लगाया.

उत्तर प्रदेश में सपा, बसपा और राष्ट्रीय लोकदल ने गठबंधन कर लिया है. ये ऐसा गठबंधन नहीं है जिसे आसानी से तोड़ा जा सके. हालांकि सपा और बसपा उन क्षेत्रों में अपने भरोसेमंद प्रत्याशियों को उतारने में असफल रहे हैं जहां दोनों का अच्छा-ख़ासा वोट बैंक है.

कांग्रेस इस गठबंधन का हिस्सा नहीं है लेकिन ऐसा भी नहीं है कि ये पूरी तरह से अलग-थलग है. कांग्रेस छोटी पार्टियों के साथ अपने अलग समीकरण बना रही है.

मिसाल के तौर पर देखें तो कांग्रेस की नई महासचिव प्रियंका गांधी ने अभी पिछले हफ़्ते ही भीम आर्मी के मुखिया चंद्रशेखर को 'करिश्माई नेता' बताया और इसके बाद ये ख़बर आई कि कांग्रेस, सपा और बसपा के पीठ पीछे चंद्रशेखर को वाराणसी से प्रधानमंत्री मोदी के ख़िलाफ़ चुनाव लड़ाने की तैयारी करा रही थी.

अब सपा और बसपा पूछ रही हैं कि कांग्रेस को ऐसा करने का अधिकार किसने दिया?

इसके बाद कांग्रेस ने ऐलान किया कि उत्तर प्रदेश में वो लोकसभा की कम से कम सात सीटों पर अपने उम्मीदवार नहीं उतारेगी, तो मायावती ने इसका तंज़ के साथ स्वागत किया.

"कांग्रेस उत्तर प्रदेश की सभी 80 लोकसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने के लिए स्वतंत्र है. हमारा गठबंधन (सपा-बसपा-आरएलडी) बीजेपी को हराने का माद्दा रखता है. कांग्रेस को उत्तर प्रदेश के लोगों में ये भ्रम फैलाना छोड़ देना चाहिए कि वो सात सीटें हमारे गठबंधन के लिए छोड़ रही है."

बसपा देश के दूसरे राज्यों जैसे पंजाब, आंध्र प्रदेश और हरियाणा में भी ग़ैर-बीजेपी, ग़ैर-कांग्रेस दलों के साथ गठबंध की संभावनाएं तलाश रही है.

मायावती ने कहा, "बसपा एक बार फिर ये स्पष्ट करना चाहती है कि हमारा कांग्रेस के साथ न तो उत्तर प्रदेश में और न ही देश के किसी और हिस्से में कोई गठबंधन है. हमारे पार्टी कार्यकर्ताओं को कांग्रेस द्वारा लगभग रोज़-रोज़ फैलाए जा रहे भ्रमों से बचकर रहना चाहिए."

उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने भी एक ट्वीट में मायावती का समर्थन किया.

उन्होंने लिखा, "एसपी, बीएसपी और आरएलडी मिलकर बीजेपी को उत्तर प्रदेश में हराने में सक्षम हैं. कांग्रेस पार्टी को किसी तरह का भ्रम फैलाने की ज़रूरत नहीं है."

कांग्रेस ने जन-अधिकार पार्टी से गठबंधन करके अपना दल से अलग हुए धड़े के लिए दो सीटें छोड़ने का ऐलान किया है.

पर बात यहीं ख़त्म नहीं होती.

कांग्रेस ने बिहार के लिए भी नई महत्वाकांक्षा सजा ली हैं, जहां राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) ख़ुद को सबसे बड़ी पार्टी मानते हुए बीजेपी और जेडीयू को सत्ता में आने से रोकने की बात कर रही है.

बिहार में लोकसभा की 40 सीटों के लिए भी बहुत से दावेदार हैं. वहीं, आरजेडी 2014 के मुक़ाबले कम सीटों पर लड़ रही है.

कांग्रेस की अपनी अलग समस्याएं हैं. क्या उसे विपक्ष की एकता के लिए अपना अस्तित्व कमज़ोर करना चाहिए? ये सवाल कांग्रेस के कई बड़े नेताओं के मन में है.

उम्मीद की जा रही है कि पार्टी उत्तर प्रदेश की 70 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगी लेकिन उसका ध्यान उन 25 सीटों पर ज़्यादा होगा जहां उसके उम्मीदवारों की जीतने की संभावना सबसे ज़्यादा है.

इसे एक तरफ़ तो कांग्रेस का झंडा बुलंद करने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है लेकिन दूसरी तरफ़ उसके 'सहयोगी दल' इसे विपक्षी दलों की एकता में सेंध लगाने के क़दम के तौर पर देख रहे हैं:एक ऐसा क़दम, जो सिर्फ़ बीजेपी को फ़ायदा पहुंचाएगा.

जिन सीटों के लिए कांग्रेस ने उम्मीदवार न उतारने का फ़ैसला किया है वो हैं- मैनपुरी (मुलायम सिंह यादव का गढ़), कन्नौज (यहां से डिंपल यादव चुनाव लड़ सकती हैं) और फ़िरोज़ाबाद.

अगर मायावती चुनाव लड़ती हैं तो ये साफ़ है कि कांग्रेस न तो उनके ख़िलाफ़ कोई उम्मीदवार खड़ा करेगी और न ही आरएलडी प्रमुख अजित सिंह और उनके बेटे जयंत चौधरी के ख़िलाफ़.

यही दिक़्क़तें पश्चिम बंगाल में वामदलों के साथ होने वाली हैं.

ममता बनर्जी के साथ तो कोई गठबंधन की बात भी नहीं कर रहा है. कांग्रेस का दावा है कि ममता ने उन्हें विपक्षी पार्टियों की रैली में शामिल होने तक के लिए नहीं बुलाया लेकिन ममता इससे इनकार कर रही हैं.

Tuesday, March 12, 2019

波音737遭大规模停飞后 美国坚称出事机型“适航”

周日(3月10日)埃塞俄比亚航空公司一架波音737 MAX8客机在飞往肯尼亚途中坠毁, 机上149名乘客和8名机组成员全员遇难,其中包括8名中国乘客。中国和其它国家禁飞该机型。但美国官方称该机型可以继续执飞。

这是半年内第二架该型号的波音客机坠毁。中国民航局周一(3月11日)通知暂停中国波音737-8(即波音737 MAX8)的商业运营。但美国联邦航空管理局(FAA)表示波音该机型可以安全飞行。

哪些航空公司和国家已经停飞737 MAX8?
国际社会对此机型持审慎态度,新加坡民航局周二(3月12日)进一步禁止所有波音737 Max机型进出该国。阿根廷航空、墨西哥航空和巴西高尔航空也暂停了飞机的飞行。印尼、埃塞俄比亚也在3月11日要求停飞该机型。

与此同时,美国联邦航空管理局周一(3月11日)晚间发布通知称,该机型“持续适航”,可以安全飞行。

美国运输部长赵小兰(Elaine Chao)表示,如果飞机有缺陷,美国联邦航空局将“立即采取适当行动”。

美国联邦航空管理局局长丹·埃尔韦尔(Dan Elwell) 说,该局的声明“告知国际社会我们现在的进度,给国际社会一个答案。”

非盈利性航空消费者组织FlyersRights.org总裁兼美国联邦航空管理局航空规则制定咨询委员会成员保罗·哈德森(Paul Hudson)呼吁将此机型停飞。哈德森周一(3月11日)在一份声明中说:“美国联邦航空局的'观望'态度会影响美国航空业的生命和安全声誉。”

波音737 Max系列机型是波音史上销售最快的飞机,全球100多家航空公司订购了超过4500架飞机。

根据中国民航资源网统计,目前中国的航空公司共有96架波音737 MAX 8飞机,包括,中国南方航空有24架、中国国航有15架、海南航空有11架、上海航空有11架、厦门航空有10架、山东航空7架、深圳航空5架、东方航空和祥鹏航空各有3架、奥凯航空和福州航空及昆明航空各有2架,九元航空有1架。

波音公司是全球航空市场上美国最大的飞机出口商。三成左右的美国造737喷气式飞机被卖往中国。而中国有望在未来十年超越美国,成世界最大的航空市场。波音预测未来二十年,中国将需要7700架新飞机,价值1200亿美元。

下一步会发生什么?
事故调查将由埃塞俄比亚当局与波音公司和美国国家运输安全委员会的专家小组协调完成。

作为“安全预防措施”,在接到下一步通知前,埃塞俄比亚航空公司表示已停飞旗下所有波音737 Max8机型。

Tuesday, March 5, 2019

क्या पीएम मोदी ने भारत में सबसे ज़्यादा सड़कें बनवाई हैं?

दावा: मौजूदा सरकार का कहना है कि उसने भारत की पिछली सभी सरकारों के मुक़ाबले तीन गुना ज़्यादा सड़कें बनवाई हैं.

हक़ीकत: ये सच है कि मौजूदा केंद्र सरकार के कार्यकाल में सड़क निर्माण का काम तेज़ी से बढ़ा है लेकिन ये पिछली सरकारों के मुकाबले तीन गुना ज़्यादा नहीं है.

भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अप्रैल, 2018 में कहा था कि उनकी सरकार में जितनी सड़कें बन रही हैं उतनी पहले किसी सरकार में नहीं बनीं.

उन्होंने कहा था, "आज हर रोज़ जिस गति से काम हो रहा है वो पहले हुए कामों से तीन गुना ज़्यादा है.''

भारतीय सड़कों का जाल दुनिया में सबसे विस्तृत है, जो लगभग 55 लाख किलोमीटर क्षेत्र कवर करता है.

साल 1947 में भारत जब आज़ाद हुआ तब यहां नेशनल हाइवे की लंबाई 21,378 किलोमीटर थी. साल 2018 तक ये लंबाई बढ़कर 1,29,709 किलोमीटर तक पहुंच गई.

नेशनल हाइवे के लिए फ़ंड केंद्र सरकार देती है और इसके निर्माण की ज़िम्मेदारी भी केंद्र सरकार की ही होती है. वहीं, राज्यों में बनने वाले हाइवे का ज़िम्मा राज्य सरकारें उठाती हैं और गांवों में सड़कें बनवाने का काम ग्रामीण विकास मंत्रालय देखता है.

पिछले 10 साल के सरकारी आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक़ साल 2014 के बाद से यानी, बीजेपी के सत्ता में आने के बाद से हर साल बनने वाले हाइवे की कुल लंबाई बढ़ी है.

2013-14 में यानी पिछली कांग्रेस सरकार की सत्ता के आख़िरी साल में 4,260 किलोमीटर हाइवे का निर्माण हुआ.

वहीं साल 2017-18 यानी मौजूदा सरकार के आख़िरी साल में 9,829 किलोमीटर हाइवे का निर्माण हुआ.

सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने दिसंबर, 2018 की अपनी समीक्षा में कहा था कि साल 2019 के आख़िर तक हाइवे की 300 सरकारी परियोजनाएं पूरी हो जाएंगी.

इतना ही नहीं, मौजूदा सरकार ने हर वित्तीय वर्ष में नेशनल हाइवे निर्माण के लिए ज़्यादा फंड दिया है.

सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने कहा था कि सड़कें और हाइवे देश की 'बहुमूल्य संपत्ति' हैं.

गडकरी के प्रयासों की विपक्षी पार्टी की नेता सोनिया गांधी ने संसद में तारीफ़ भी की थी.

ग्रामीण इलाकों में सड़कों के विस्तार की योजना साल 2000 में बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार से शुरू होती है.

पिछले साल मई में मौजूदा बीजेपी सरकार ने कहा कि उन्होंने 2016-17 वित्तीय वर्ष में गांवों में 47,000 किलोमीटर से ज़्यादा सड़कों का निर्माण कराया.

बीजेपी ने कहा, "साल 2016-17 में मोदी सरकार के दरमियान ग्रामीण क्षेत्रों में सड़कों का सबसे ज़्यादा निर्माण हुआ."

हालांकि, जबसे बीजेपी सत्ता में आई, ग्रामीण इलाकों में सड़कें बनाने के लिए दिया जाने वाला बजट हर वित्तीय वर्ष में बढ़ाया गया. इसका मक़सद था दूर-दराज़ के इलाकों में पहुंच को आसान बनाना.

विश्व बैंक ने दिसंबर, 2018 में जारी की गई अपनी एक रिपोर्ट में बताया है कि ग्रामीण क्षेत्रों में सड़कें बनाने के लिए वो साल 2004 से भारत को वित्तीय मदद देता आ रहा है.