अंग्रेज़ों की तरफ़ से कैप्टन रॉड्रिक ब्रिग्स पहला शख़्स था जिसने रानी लक्ष्मीबाई को अपनी आँखों से लड़ाई के मैदान में लड़ते हुए देखा.
उन्होंने घोड़े की रस्सी अपने दाँतों से दबाई हुई थी. वो दोनों हाथों से तलवार चला रही थीं और एक साथ दोनों तरफ़ वार कर रही थीं.
उनसे पहले एक और अंग्रेज़ जॉन लैंग को रानी लक्ष्मीबाई को नज़दीक से देखने का मौका मिला था, लेकिन लड़ाई के मैदान में नहीं, उनकी हवेली में.
जब दामोदर के गोद लिए जाने को अंग्रेज़ों ने अवैध घोषित कर दिया तो रानी लक्ष्मीबाई को झाँसी का अपना महल छोड़ना पड़ा था.
रानी ने वकील जॉन लैंग की सेवाएं लीं जिसने हाल ही में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ़ एक केस जीता था.
लैंग का जन्म ऑस्ट्रेलिया में हुआ था और वो मेरठ में एक अख़बार, 'मुफ़ुस्सलाइट' निकाला करते थे.
लैंग अच्छी ख़ासी फ़ारसी और हिंदुस्तानी बोल लेते थे और ईस्ट इंडिया कंपनी का प्रशासन उन्हें पसंद नहीं करता था क्योंकि वो हमेशा उन्हें घेरने की कोशिश किया करते थे.
जब लैंग पहली बार झाँसी आए तो रानी ने उनको लेने के लिए घोड़े का एक रथ आगरा भेजा था.
उनको झाँसी लाने के लिए रानी ने अपने दीवान और एक अनुचर को आगरा रवाना किया.
अनुचर के हाथ में बर्फ़ से भरी बाल्टी थी जिसमें पानी, बीयर और चुनिंदा वाइन्स की बोतलें रखी हुई थीं. पूरे रास्ते एक नौकर लैंग को पंखा करते आया था.
झाँसी पहुंचने पर लैंग को पचास घुड़सवार एक पालकी में बैठा कर 'रानी महल' लाए जहाँ के बगीचे में रानी ने एक शामियाना लगवाया हुआ था.
रानी लक्ष्मीबाई शामियाने के एक कोने में एक पर्दे के पीछे बैठी हुई थीं. तभी अचानक रानी के दत्तक पुत्र दामोदर ने वो पर्दा हटा दिया.
लैंग की नज़र रानी के ऊपर गई. बाद में रेनर जेरॉस्च ने एक किताब लिखी, 'द रानी ऑफ़ झाँसी, रेबेल अगेंस्ट विल.'
किताब में रेनर जेरॉस्च ने जॉन लैंग को कहते हुए बताया, 'रानी मध्यम कद की तगड़ी महिला थीं. अपनी युवावस्था में उनका चेहरा बहुत सुंदर रहा होगा, लेकिन अब भी उनके चेहरे का आकर्षण कम नहीं था. मुझे एक चीज़ थोड़ी अच्छी नहीं लगी, उनका चेहरा ज़रूरत से ज़्यादा गोल था. हाँ उनकी आँखें बहुत सुंदर थीं और नाक भी काफ़ी नाज़ुक थी. उनका रंग बहुत गोरा नहीं था. उन्होंने एक भी ज़ेवर नहीं पहन रखा था, सिवाए सोने की बालियों के. उन्होंने सफ़ेद मलमल की साड़ी पहन रखी थी, जिसमें उनके शरीर का रेखांकन साफ़ दिखाई दे रहा था. जो चीज़ उनके व्यक्तित्व को थोड़ा बिगाड़ती थी- वो थी उनकी फटी हुई आवाज़.'
बहरहाल कैप्टन रॉड्रिक ब्रिग्स ने तय किया कि वो ख़ुद आगे जा कर रानी पर वार करने की कोशिश करेंगे.
लेकिन जब-जब वो ऐसा करना चाहते थे, रानी के घुड़सवार उन्हें घेर कर उन पर हमला कर देते थे. उनकी पूरी कोशिश थी कि वो उनका ध्यान भंग कर दें.
कुछ लोगों को घायल करने और मारने के बाद रॉड्रिक ने अपने घोड़े को एड़ लगाई और रानी की तरफ़ बढ़ चले थे.
उसी समय अचानक रॉड्रिक के पीछे से जनरल रोज़ की अत्यंत निपुण ऊँट की टुकड़ी ने एंट्री ली. इस टुकड़ी को रोज़ ने रिज़र्व में रख रखा था.
इसका इस्तेमाल वो जवाबी हमला करने के लिए करने वाले थे. इस टुकड़ी के अचानक लड़ाई में कूदने से ब्रिटिश खेमे में फिर से जान आ गई. रानी इसे फ़ौरन भाँप गईं.
Thursday, January 24, 2019
Wednesday, January 16, 2019
कौन है वो जो बना मायावती का 'साया'
उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा गठबंधन की घोषणा के बाद ये गठबंधन प्रदेश की राजनीति की चर्चा का मुख्य विषय बन गया है लेकिन इस चर्चा के दौरान एक ख़ास युवक ने सबका ध्यान खींचा है, और वो युवक हैं बसपा सुप्रीमो मायावती के भतीजे आकाश.
पिछले कुछ दिनों से मायावती के साथ और उन्हीं के आस-पास आकाश मायावती की छाया की तरह दिखाई पड़ते हैं.
मौक़ा चाहे सपा-बसपा गठबंधन की घोषणा के वक़्त प्रेस वार्ता का हो, अखिलेश यादव और तेजस्वी यादव से मायावती की मुलाक़ात का हो, किसी सार्वजनिक रैली या सभा का हो या फिर मंगलवार को मायावती के जन्म दिन का, आकाश हर जगह उनके साथ खड़े मिलते हैं.
कौन हैं आकाश?
आकाश मायावती के भाई आनंद के बेटे हैं और बताया जा रहा है कि इस वक़्त वो हर समय उनके साथ रहकर राजनीति की बारीकियां सीख रहे हैं.
हालांकि उन्होंने लंदन से मैनेजमेंट में पढ़ाई की है लेकिन जानकारों के मुताबिक़, मायावती जिस तरह से उन्हें हर वक़्त अपने साथ रखती हैं, उससे इसमें संदेह नहीं होना चाहिए कि वो अपने भतीजे को राजनीति में जल्द ही उतारना चाहती हैं.
बहुजन समाज पार्टी के नेता आकाश के बारे में कुछ भी बताने से साफ़ इनकार कर देते हैं लेकिन नाम न बताने की शर्त पर एक बड़े नेता ने इतना ज़रूर कहा, "फिलहाल बहनजी भतीजे आकाश को बसपा में युवा नेता के तौर पर स्थापित करने में लगी हैं और उसे पार्टी की अहम ज़िम्मेदारी देने की तैयारी कर रही हैं. लेकिन अभी वो सिर्फ़ उनके साथ दिखते भर हैं, राजनीतिक फ़ैसले बहनजी ख़ुद ही लेती हैं."
हालांकि बसपा में कोई युवा फ्रंटल संगठन नहीं है, बावजूद इसके पार्टी में और चुनावों में युवाओं की भागीदारी बढ़-चढ़कर देखी जाती है.
जानकारों के मुताबिक, बीएसपी में युवा संगठन की ज़रूरत सभी नेता महसूस करते हैं लेकिन इस बारे में कोई खुलकर नहीं बोलता.
यही नहीं, पिछले कुछ चुनावों में बीएसपी की हार के पीछे युवाओं का पार्टी से न जुड़ना भी बताया जा रहा है जबकि उसी दौरान सहारनपुर में भीम आर्मी जैसे युवाओं के आकर्षित करने वाले संगठन तेज़ी से आगे बढ़ रहे हैं और बीएसपी के लिए कब चुनौती बन जाएं, कहा नहीं जा सकता.
वरिष्ठ पत्रकार शरत प्रधान कहते हैं, "आकाश को आगे करने के पीछे मायावती की दलित युवाओं को पार्टी की ओर लुभाने की भी हो सकती है. ऐसा करके वो दलित युवाओं के बीच उभरने वाले अन्य संगठनों की धार को कुंद करने की कोशिश करेंगी."
कुछ दिन पहले पार्टी पदाधिकारियों की एक बैठक में मायावती ने प्रदेश भर से आए नेताओं का परिचय आकाश से कराया था.
उस वक़्त मायावती ने अपनी पार्टी के लोगों को आकाश के बारे में यही बताया था कि वो उनके भाई आनंद का बेटा है और लंदन से एमबीए करके लौटा है.
उस वक़्त मायावती ने ये भी कहा था कि आकाश आगे से पार्टी का काम देखेगा, लेकिन अभी तक पार्टी में उन्हें आधिकारिक रूप से कोई ज़िम्मेदारी नहीं दी गई है.
सहारनपुर के वरिष्ठ पत्रकार रियाज़ हाशमी बताते हैं, "उस वक़्त जब मायावती शब्बीरपुर आई थीं तो आकाश उनके साथ था. तब तक लोगों को उसके बारे में पता नहीं था लेकिन उस समय ये बात स्पष्ट हो गई कि ये बहनजी का भतीजा है. आकाश मायावती के साथ ही था, हर तरफ़ जिज्ञासा की दृष्टि से देख रहा था, वो बहनजी के तौर-तरीकों, को काफ़ी गंभीरता से देख रहा था."
रियाज़ हाशमी बताते हैं कि उसी समय ये तय हो गया था कि लंदन से पढ़ा-लिखा आकाश अब बहनजी की राजनीति में भी मदद करेगा और फिर बाद में मायावती ने पार्टी नेताओं को सीधे तौर पर ये बात बता भी दी थी.
लखनऊ में वरिष्ठ पत्रकार शरत प्रधान कहते हैं कि पार्टी के युवाओं, ख़ासकर पढ़े-लिखे और उच्च शिक्षित वर्ग को लुभाने के लिए मायावती और उनकी पार्टी आकाश का बेहतर इस्तेमाल कर सकती हैं.
उनके मुताबिक़, "मायावती आकाश को भी पार्टी का कुछ वैसा चेहरा आगे चलकर प्रोजेक्ट कर सकती हैं, जैसा कि सपा में अखिलेश यादव हैं. हालांकि आकाश को अभी कोई बड़ी ज़िम्मेदारी मायावती नहीं देने वाली हैं, पर आगे चलकर तो ऐसा करेंगी ही."
हालांकि मायावती पहले राजनीति में परिवारवाद के ख़िलाफ़ थीं और भाई आनंद के अलावा उनके किसी रिश्तेदार या परिवार के किसी अन्य सदस्य की कभी बीएसपी में प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से कोई दख़ल भी देखने को नहीं मिला है. लेकिन भाई आनंद के प्रति उनका लगाव शुरू से रहा.
बीएसपी के एक नेता बताते हैं, "आनंद को बहनजी ने पार्टी में उपाध्यक्ष जैसा अहम पद भले दिया था लेकिन ये भी कह रखा था कि वो कभी विधायक, मंत्री या मुख्यमंत्री नहीं बनेगा. इससे साफ़ है कि परिवारवाद का बहनजी न सिर्फ़ विरोध करती हैं बल्कि ख़ुद पर भी लागू करती हैं."
हालांकि आनंद इस वक़्त बीएसपी के संगठन में भी किसी पद पर नहीं हैं लेकिन उनके बेटे आकाश जिस तरह से मायावती के साथ पार्टी की बैठकों, मुलाक़ातों इत्यादि में सक्रिय हैं, उसे देखते हुए राजनीतिक गलियारों में उन्हें मायावती के उत्तराधिकारी के तौर पर भी देखा जाने लगा है.
पिछले कुछ दिनों से मायावती के साथ और उन्हीं के आस-पास आकाश मायावती की छाया की तरह दिखाई पड़ते हैं.
मौक़ा चाहे सपा-बसपा गठबंधन की घोषणा के वक़्त प्रेस वार्ता का हो, अखिलेश यादव और तेजस्वी यादव से मायावती की मुलाक़ात का हो, किसी सार्वजनिक रैली या सभा का हो या फिर मंगलवार को मायावती के जन्म दिन का, आकाश हर जगह उनके साथ खड़े मिलते हैं.
कौन हैं आकाश?
आकाश मायावती के भाई आनंद के बेटे हैं और बताया जा रहा है कि इस वक़्त वो हर समय उनके साथ रहकर राजनीति की बारीकियां सीख रहे हैं.
हालांकि उन्होंने लंदन से मैनेजमेंट में पढ़ाई की है लेकिन जानकारों के मुताबिक़, मायावती जिस तरह से उन्हें हर वक़्त अपने साथ रखती हैं, उससे इसमें संदेह नहीं होना चाहिए कि वो अपने भतीजे को राजनीति में जल्द ही उतारना चाहती हैं.
बहुजन समाज पार्टी के नेता आकाश के बारे में कुछ भी बताने से साफ़ इनकार कर देते हैं लेकिन नाम न बताने की शर्त पर एक बड़े नेता ने इतना ज़रूर कहा, "फिलहाल बहनजी भतीजे आकाश को बसपा में युवा नेता के तौर पर स्थापित करने में लगी हैं और उसे पार्टी की अहम ज़िम्मेदारी देने की तैयारी कर रही हैं. लेकिन अभी वो सिर्फ़ उनके साथ दिखते भर हैं, राजनीतिक फ़ैसले बहनजी ख़ुद ही लेती हैं."
हालांकि बसपा में कोई युवा फ्रंटल संगठन नहीं है, बावजूद इसके पार्टी में और चुनावों में युवाओं की भागीदारी बढ़-चढ़कर देखी जाती है.
जानकारों के मुताबिक, बीएसपी में युवा संगठन की ज़रूरत सभी नेता महसूस करते हैं लेकिन इस बारे में कोई खुलकर नहीं बोलता.
यही नहीं, पिछले कुछ चुनावों में बीएसपी की हार के पीछे युवाओं का पार्टी से न जुड़ना भी बताया जा रहा है जबकि उसी दौरान सहारनपुर में भीम आर्मी जैसे युवाओं के आकर्षित करने वाले संगठन तेज़ी से आगे बढ़ रहे हैं और बीएसपी के लिए कब चुनौती बन जाएं, कहा नहीं जा सकता.
वरिष्ठ पत्रकार शरत प्रधान कहते हैं, "आकाश को आगे करने के पीछे मायावती की दलित युवाओं को पार्टी की ओर लुभाने की भी हो सकती है. ऐसा करके वो दलित युवाओं के बीच उभरने वाले अन्य संगठनों की धार को कुंद करने की कोशिश करेंगी."
कुछ दिन पहले पार्टी पदाधिकारियों की एक बैठक में मायावती ने प्रदेश भर से आए नेताओं का परिचय आकाश से कराया था.
उस वक़्त मायावती ने अपनी पार्टी के लोगों को आकाश के बारे में यही बताया था कि वो उनके भाई आनंद का बेटा है और लंदन से एमबीए करके लौटा है.
उस वक़्त मायावती ने ये भी कहा था कि आकाश आगे से पार्टी का काम देखेगा, लेकिन अभी तक पार्टी में उन्हें आधिकारिक रूप से कोई ज़िम्मेदारी नहीं दी गई है.
सहारनपुर के वरिष्ठ पत्रकार रियाज़ हाशमी बताते हैं, "उस वक़्त जब मायावती शब्बीरपुर आई थीं तो आकाश उनके साथ था. तब तक लोगों को उसके बारे में पता नहीं था लेकिन उस समय ये बात स्पष्ट हो गई कि ये बहनजी का भतीजा है. आकाश मायावती के साथ ही था, हर तरफ़ जिज्ञासा की दृष्टि से देख रहा था, वो बहनजी के तौर-तरीकों, को काफ़ी गंभीरता से देख रहा था."
रियाज़ हाशमी बताते हैं कि उसी समय ये तय हो गया था कि लंदन से पढ़ा-लिखा आकाश अब बहनजी की राजनीति में भी मदद करेगा और फिर बाद में मायावती ने पार्टी नेताओं को सीधे तौर पर ये बात बता भी दी थी.
लखनऊ में वरिष्ठ पत्रकार शरत प्रधान कहते हैं कि पार्टी के युवाओं, ख़ासकर पढ़े-लिखे और उच्च शिक्षित वर्ग को लुभाने के लिए मायावती और उनकी पार्टी आकाश का बेहतर इस्तेमाल कर सकती हैं.
उनके मुताबिक़, "मायावती आकाश को भी पार्टी का कुछ वैसा चेहरा आगे चलकर प्रोजेक्ट कर सकती हैं, जैसा कि सपा में अखिलेश यादव हैं. हालांकि आकाश को अभी कोई बड़ी ज़िम्मेदारी मायावती नहीं देने वाली हैं, पर आगे चलकर तो ऐसा करेंगी ही."
हालांकि मायावती पहले राजनीति में परिवारवाद के ख़िलाफ़ थीं और भाई आनंद के अलावा उनके किसी रिश्तेदार या परिवार के किसी अन्य सदस्य की कभी बीएसपी में प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से कोई दख़ल भी देखने को नहीं मिला है. लेकिन भाई आनंद के प्रति उनका लगाव शुरू से रहा.
बीएसपी के एक नेता बताते हैं, "आनंद को बहनजी ने पार्टी में उपाध्यक्ष जैसा अहम पद भले दिया था लेकिन ये भी कह रखा था कि वो कभी विधायक, मंत्री या मुख्यमंत्री नहीं बनेगा. इससे साफ़ है कि परिवारवाद का बहनजी न सिर्फ़ विरोध करती हैं बल्कि ख़ुद पर भी लागू करती हैं."
हालांकि आनंद इस वक़्त बीएसपी के संगठन में भी किसी पद पर नहीं हैं लेकिन उनके बेटे आकाश जिस तरह से मायावती के साथ पार्टी की बैठकों, मुलाक़ातों इत्यादि में सक्रिय हैं, उसे देखते हुए राजनीतिक गलियारों में उन्हें मायावती के उत्तराधिकारी के तौर पर भी देखा जाने लगा है.
Tuesday, January 8, 2019
नागरिकता संशोधन बिल असमिया जाति-संस्कृति के लिए सर्वनाशी!
लोकसभा चुनाव से महज कुछ महीने पहले नागरिकता संशोधन विधेयक 2016 को संसद में पास करवाने को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी पार्टी बीजेपी की मंशा पर न केवल सवाल खड़े हो गए है बल्कि असम में इसके खिलाफ जोरदार विरोध शुरू हो गया है.
नागरिकता संशोधन विधेयक के विरोध में मंगलवार को ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू) समेत कुल 30 प्रमुख संगठनों ने पूर्वोत्तर बंद बुलाया, जिसका असम में व्यापक असर देखा जा रहा है.
दरअसल, अभी चार दिन पहले प्रधानमंत्री मोदी असम के सिलचर दौरे पर गए थे. उन्होंने वहां एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा था कि राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर यानी एनआरसी से किसी भी भारतीय नागरिक का नाम नहीं छूटेगा. वहीं उन्होंने नागरिकता संशोधन विधेयक को लोगों की भावनाओं और जिंदगियों से जुड़ा बताया था.
लेकिन मोदी के इस इलाके में दौरे को लेकर कई सवाल उठ रहें हैं. ऐसा कहा जा रहा है कि प्रधानमंत्री मोदी की बराकघाटी में हुई इस जनसभा के बाद राज्य में पहले से चल रहा विरोध काफी बढ़ गया. क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी लोकसभा चुनाव से ठीक पहले बराकघाटी के जिस इलाके में रैली करने गए थे, वहां हिंदुओं की एक बड़ी आबादी बांग्लादेश से आए विस्थापितों की है. ये हिंदू बंगाली लोग नागरिकता बिल का समर्थन कर रहें हैं. जबकि बराकघाटी और ब्रह्मपुत्र के किनारे बसे असमिया लोगों के बीच हिंसक टकराव का पुराना इतिहास है.
असम में जो विरोध हो रहा है वो धार्मिक उत्पीड़न के तहत बांग्लादेश से आने वाले हिंदू बंगालियों को यहां बसाने को लेकर है. असम के मूल स्वदेशी लोगों को आशंका है कि पड़ोसी मुल्क से लाखों हिंदुओं को अगर यहां बसा दिया गया तो असमिया जाति, भाषा और उनकी संस्कृति पूरी तरह खत्म हो जाएगी.
दरअसल, प्रधानमंत्री बनने से पहले नरेंद्र मोदी ने 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान पश्चिम बंगाल की एक चुनावी रैली में बांग्लादेशी घुसपैठियों से बोरिया-बिस्तर बांधने को कहा था. नरेद्र मोदी के इस चुनावी भाषण का 2016 के असम विधानसभा चुनाव पर काफी असर पड़ा. नतीजतन उस समय पांच विधायकों वाली बीजेपी राज्य की कुल 126 सीटों में से सीधे 61 सीट जीतने में कामयाब रही और पहली बार असम में पार्टी की सरकार बन गई.
लेकिन अब असम में नागरिकता संशोधन विधेयक का विरोध कर रहे संगठन 'नरेंद्र मोदी गो बैक' के नारे लगा रहे हैं. इस विधेयक का विरोध कर रहे जातीय संगठनों का कहना है कि अगर मोदी सरकार के इस प्रस्तावित कानून को संसद की मंजूरी मिल जाती है तो असमिया भाषा, साहित्य और संस्कृति हमेशा के लिए खत्म हो जाएगी.
राज्य में हो रहे व्यापक विरोध को देखते हुए सोमवार को क्षेत्रीय पार्टी असम गण परिषद (एजीपी) ने नागरिकता संशोधन विधेयक के मुद्दे पर बीजेपी गठबंधन सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया है. हालांकि एजीपी के समर्थन वापस लेने से प्रदेश में संख्या बल को लेकर मौजूदा बीजेपी सरकार पर कोई आंच नहीं आएगी.
बीजेपी के कुछ प्रदेश नेताओं का कहना है कि ये विरोध कांग्रेस और कुछ संगठनों की तरफ से है. इससे राज्य की एक बड़ी आबादी कोई इत्तेफाक नहीं रखती. इन नेताओं का तर्क है कि इस विधेयक के लागू होने से असम के लोगों को कोई नुकसान नहीं होगा. उनकी सरकार पड़ोसी मुल्कों से धार्मिक उत्पीड़न के तहत आए अल्पसंख्यक लोगों को मानवीय आधार पर नागरिकता दे रही है. वहीं बीजेपी के कुछ नेता इस मुद्दे को 'मोहम्मद अली जिन्ना की विरासत' से जोड़कर अपने बयान दे रहें हैं.
असम का बोगीबील पुल भारत के लिए क्यों महत्वपूर्ण है
असम प्रदेश बीजेपी के वरिष्ठ नेता विजय गुप्ता ने बीबीसी से कहा कि इस बिल का राज्य की सवा तीन करोड़ आबादी विरोध नहीं कर रही. कुछ लोग हैं जो इसका विरोध कर रहें हैं.
वे कहते हैं, "एजीपी के समर्थन वापस लेने से हमारी सरकार को कोई नुकसान नहीं है. क्योंकि जो कुछ हो रहा है वो असम के लोगों के हित के लिए है. प्रदेश की जनता अपना हित कहां है और कहां नहीं है वो अच्छे से समझती है. हमारी पार्टी कोई हिंदू कार्ड नहीं खेल रही. बीजेपी का यह बहुत पुराना स्टेंड है कि जो धार्मिक उत्पीड़न के तहत अपना घर-बाहर सब कुछ छोड़कर आए हैं उन्हें भारत की नागरिकता दी जाएगी. हमारी पार्टी उनके साथ न्याय करेगी."
नागरिकता संशोधन विधेयक के विरोध में मंगलवार को ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू) समेत कुल 30 प्रमुख संगठनों ने पूर्वोत्तर बंद बुलाया, जिसका असम में व्यापक असर देखा जा रहा है.
दरअसल, अभी चार दिन पहले प्रधानमंत्री मोदी असम के सिलचर दौरे पर गए थे. उन्होंने वहां एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा था कि राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर यानी एनआरसी से किसी भी भारतीय नागरिक का नाम नहीं छूटेगा. वहीं उन्होंने नागरिकता संशोधन विधेयक को लोगों की भावनाओं और जिंदगियों से जुड़ा बताया था.
लेकिन मोदी के इस इलाके में दौरे को लेकर कई सवाल उठ रहें हैं. ऐसा कहा जा रहा है कि प्रधानमंत्री मोदी की बराकघाटी में हुई इस जनसभा के बाद राज्य में पहले से चल रहा विरोध काफी बढ़ गया. क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी लोकसभा चुनाव से ठीक पहले बराकघाटी के जिस इलाके में रैली करने गए थे, वहां हिंदुओं की एक बड़ी आबादी बांग्लादेश से आए विस्थापितों की है. ये हिंदू बंगाली लोग नागरिकता बिल का समर्थन कर रहें हैं. जबकि बराकघाटी और ब्रह्मपुत्र के किनारे बसे असमिया लोगों के बीच हिंसक टकराव का पुराना इतिहास है.
असम में जो विरोध हो रहा है वो धार्मिक उत्पीड़न के तहत बांग्लादेश से आने वाले हिंदू बंगालियों को यहां बसाने को लेकर है. असम के मूल स्वदेशी लोगों को आशंका है कि पड़ोसी मुल्क से लाखों हिंदुओं को अगर यहां बसा दिया गया तो असमिया जाति, भाषा और उनकी संस्कृति पूरी तरह खत्म हो जाएगी.
दरअसल, प्रधानमंत्री बनने से पहले नरेंद्र मोदी ने 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान पश्चिम बंगाल की एक चुनावी रैली में बांग्लादेशी घुसपैठियों से बोरिया-बिस्तर बांधने को कहा था. नरेद्र मोदी के इस चुनावी भाषण का 2016 के असम विधानसभा चुनाव पर काफी असर पड़ा. नतीजतन उस समय पांच विधायकों वाली बीजेपी राज्य की कुल 126 सीटों में से सीधे 61 सीट जीतने में कामयाब रही और पहली बार असम में पार्टी की सरकार बन गई.
लेकिन अब असम में नागरिकता संशोधन विधेयक का विरोध कर रहे संगठन 'नरेंद्र मोदी गो बैक' के नारे लगा रहे हैं. इस विधेयक का विरोध कर रहे जातीय संगठनों का कहना है कि अगर मोदी सरकार के इस प्रस्तावित कानून को संसद की मंजूरी मिल जाती है तो असमिया भाषा, साहित्य और संस्कृति हमेशा के लिए खत्म हो जाएगी.
राज्य में हो रहे व्यापक विरोध को देखते हुए सोमवार को क्षेत्रीय पार्टी असम गण परिषद (एजीपी) ने नागरिकता संशोधन विधेयक के मुद्दे पर बीजेपी गठबंधन सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया है. हालांकि एजीपी के समर्थन वापस लेने से प्रदेश में संख्या बल को लेकर मौजूदा बीजेपी सरकार पर कोई आंच नहीं आएगी.
बीजेपी के कुछ प्रदेश नेताओं का कहना है कि ये विरोध कांग्रेस और कुछ संगठनों की तरफ से है. इससे राज्य की एक बड़ी आबादी कोई इत्तेफाक नहीं रखती. इन नेताओं का तर्क है कि इस विधेयक के लागू होने से असम के लोगों को कोई नुकसान नहीं होगा. उनकी सरकार पड़ोसी मुल्कों से धार्मिक उत्पीड़न के तहत आए अल्पसंख्यक लोगों को मानवीय आधार पर नागरिकता दे रही है. वहीं बीजेपी के कुछ नेता इस मुद्दे को 'मोहम्मद अली जिन्ना की विरासत' से जोड़कर अपने बयान दे रहें हैं.
असम का बोगीबील पुल भारत के लिए क्यों महत्वपूर्ण है
असम प्रदेश बीजेपी के वरिष्ठ नेता विजय गुप्ता ने बीबीसी से कहा कि इस बिल का राज्य की सवा तीन करोड़ आबादी विरोध नहीं कर रही. कुछ लोग हैं जो इसका विरोध कर रहें हैं.
वे कहते हैं, "एजीपी के समर्थन वापस लेने से हमारी सरकार को कोई नुकसान नहीं है. क्योंकि जो कुछ हो रहा है वो असम के लोगों के हित के लिए है. प्रदेश की जनता अपना हित कहां है और कहां नहीं है वो अच्छे से समझती है. हमारी पार्टी कोई हिंदू कार्ड नहीं खेल रही. बीजेपी का यह बहुत पुराना स्टेंड है कि जो धार्मिक उत्पीड़न के तहत अपना घर-बाहर सब कुछ छोड़कर आए हैं उन्हें भारत की नागरिकता दी जाएगी. हमारी पार्टी उनके साथ न्याय करेगी."
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